श्याम बेनेगल
14 दिसंबर 1934 - 23 दिसंबर 2024
आजादी के बाद पचास के दशक में जो बचपन आशावाद की गोद में पला था वह सत्तर का दशक आते-आते निराशा की खाई में गिर चुका था। अमिताभ बच्चन के ऐंग्री यंग मैन का जन्म भी इसी निराशा से उत्पन्न क्रोध का परिणाम था। पचास के दशक में इटली और फ्रांस के न्यू वेव सिनेमा से प्रेरित होकर सत्यजीत राय ने नई फिल्म पद्धति की शुरुआत की। बंबई में भी बिमल रॉय ने इस समानांतर लहर को एक हद तक अपनाते हुए दो बीघा जमीन बनाई। साठ के दशक तक कमर्शियल और समानांतर सिनेमा के बीच कोई स्पष्ट रेखा नहीं खींची गई थी, पर सत्तर की शुरुआत में मणि कौल, बासु चटर्जी और एम. एस. सथ्यू ने मुख्यधारा से हटकर कुछ प्रयास किए जिसने समानांतर सिनेमा के बीज बोये। समानांतर सिनेमा का वह बीज श्याम बेनेगल की अंकुर के साथ फूट निकला।
1974 में मनोज कुमार अपनी मल्टीस्टारर ब्लॉकबस्टर रोटी कपड़ा और मकान लेकर आए थे। तब राजेश खन्ना का सुपरस्टारडम अपनी आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुका था और अमिताभ बच्चन सलीम-जावेद की दी हुई जंजीर से एक साल पहले ही नए महानायक का श्री गणेश कर चुके थे। मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा की फिल्में हिंदी सिनेमा का फार्मूला बदल रही थीं। ऐसे में अंकुर के साथ सही मायने में समानांतर सिनेमा की शुरुआत हुई।
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