युद्ध-विराम के आगे-पीछे

अच्छी खबर यह है कि इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू की कैबिनेट के आखिरी मौके पर पलट जाने की आशंकाओं के बावजूद रविवार 19 जनवरी को युद्ध-विराम समझौता लागू हो गया। समझौते पर अनिश्चय का यह नाटक रचा गया था ताकि मजहबी पार्टियां उसे खारिज कर दें और अपने कट्टरतावादी समर्थकों को पाले में बनाए रखा जा सके। सरकार के गिरने का तो कोई खतरा था नहीं क्योंकि विपक्ष बाकी बंधकों को छुड़ाने के लिए प्रधानमंत्री को समर्थन दे चुका था।
वैसे, अभी तक युद्ध-विराम समझौते के पहले हिस्से पर ही कुछ विस्तार से काम हुआ है। पहला चरण समाप्त होने के बाद दूसरे और तीसरे हिस्से पर अमल होना है, लेकिन यह आशंका बनी है कि 33 इजरायली बंधकों और लगभग 700-900 या उससे अधिक फिलिस्तीनी कैदियों की अदला-बदली हो जाने के पहले चरण के बाद तीन हिस्से वाला जटिल समझौता टूट सकता है।
इसलिए यह अनिश्चित है कि बंधक-कैदी अदला-बदली के बाद युद्ध-विराम समझौता कायम रहेगा या नहीं। फिलहाल इस समझौते की वजह से घिरी हुई गाजा पट्टी में जरूरी मानवीय मदद पहुंचेगी। समझौते के मुताबिक हर रोज रसद भरे 600 ट्रकों के जाने की इजाजत है, लेकिन पिछले अनुभव यही बताते हैं कि रसद के पहुंचने और लोगों के बीच बंटवारे में कई चुनौतियां बनी रहेंगी। इजरायली सैनिकों को हर ट्रक की जांच-पड़ताल में घंटों लग सकते हैं और वितरण में लगे संयुक्त राष्ट्र तथा मदद में जुटे दूसरे कार्यकर्ताओं पर संदेह जाहिर किया जा सकता है। सो, यह देखना अभी बाकी है कि इस बार स्थितियां अलग होंगी या नहीं।
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