बच्चा जन्म से ले कर लगभग एक या दो वर्ष की उम्र तक तेजी से बढ़ता है. इस सैंसिटिव अवस्था में मातापिता को अपने बच्चे की वृद्धि और विकास का आकलन करना जरूरी होता है. बच्चे की वृद्धि और विकास में देरी को समय रहते पहचान कर सही उपाय कर लिया जाए तो शुरुआत से ही इस प्रक्रिया के बच्चों पर सकारात्मक परिणाम मिलने लगते हैं.
बाल मनोविज्ञान के अनुसार, बच्चे की वृद्धि और विकास से जुड़ी 4 अवस्थाएं होती हैं जिन के तहत मातापिता अपने बच्चे के शुरुआती दौर में विकास के इस मील के पत्थर की निगरानी कर सकते हैं. ये अवस्थाएं हैं- ग्रौस मोटर, फाइन मोटर, सामाजिक संचार और भाषा व सुनने का कौशल यहां हम हरेक अवस्था पर चर्चा कर रहे हैं.
पहली अवस्था ग्रौस मोटर है. इस में 4 महीने तक बच्चा अपने सिर को नियंत्रित करने लगता है. 8 से 10 महीने में वह बिना सहारे के बैठना सीखता है. 12 महीने तक बिना सहारे खड़ा होने लगता है.
इस के अलावा, बच्चा 15 महीने में सीढ़ियों पर रेंगना शुरू कर देता है. 2 साल में हाथों और घुटनों के बल सीढ़ियों से ऊपर और नीचे आने की कोशिश करता है और 3 साल तक अपने दोनों पैरों से सीढ़ियां उतरनेचढ़ने लगता है.
फाइन मोटर की अवस्था में, 4 महीने हो जाने पर बच्चा अपने दोनों हाथों से किसी वस्तु को पकड़ने लगता है, जैसेअकसर बच्चे अपनी दूध की बोतल को हाथ से पकड़ने की कोशिश करते हैं. 12 महीने में बच्चा एक वयस्क की तरह पेन या पैंसिल पकड़ना सीख जाता है. वहीं 18 महीने तक आतेआते पेंसिल या क्रेयान से कुछकुछ लिखने लगता है और मातापिता के गाइड करने पर वह 4 ब्लौक्स या क्यूब्स से एक बुर्ज बनाने जैसी मजेदार गतिविधियां करता है.
जन्म से 3 महीने की अवस्था
• तेज आवाजों पर रिऐक्ट करना.
This story is from the January First 2023 edition of Sarita.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the January First 2023 edition of Sarita.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
कंगाली और गृहयुद्ध के मुहाने पर बौलीवुड
बौलीवुड के हालात अब बदतर होते जा रहे हैं. फिल्में पूरी तरह से कौर्पोरेट के हाथों में हैं जहां स्क्रिप्ट, कलाकार, लेखक व दर्शक गौण हो गए हैं और मार्केट पहले स्थान पर है. यह कहना शायद गलत न होगा कि अब बौलीवुड कंगाली और गृहयुद्ध की ओर अग्रसर है.
बीमार व्यक्ति से मिलने जाएं तो कैसा बरताव करें
अकसर अपने बीमार परिजनों से मिलने जाते समय लोग ऐसी हरकतें कर या बातें कह देते हैं जिस से सकारात्मकता की जगह नकारात्मकता हावी हो जाती है और माहौल खराब हो जाता है. जानिए ऐसे मौके पर सही बरताव करने का तरीका.
उतरन
कोई जिंदगीभर उतरन पहनती रही तो किसी को उतरन के साथ शेष जिंदगी गुजारनी है, यह समय का चक्र है या दौलत की ताकत.
युवतियां ब्रेकअप से कैसे उबरें
ब्रेकअप के बाद सब का अपना अलग हीलिंग प्रोसैस होता है लेकिन खुद से प्यार करना और समय देना सब से जरूरी होता है.
इकलौते बच्चे को जरूरत से ज्यादा प्रोटैक्ट करना ठीक नहीं
जिन परिवारों में इकलौता बच्चा होता है वे बच्चे की सुरक्षा के प्रति बहुत सजग रहते हैं. उसे हर वक्त अपनी निगरानी में रखते हैं. लेकिन बच्चे की अत्यधिक सुरक्षा उस के भविष्य और कैरियर को तबाह कर सकती है.
मेले मामा चाचू बूआ की शादी में जलूल आना
शादी कार्ड में जिन के द्वारा लिखवाया गया होता है कि 'मेले मामा/चाचू की शादी में जलूल आना' उन प्यारेप्यारे बच्चों के लिए सब से बड़ी सजा हो जाती है कि वे देररात तक जाग सकते नहीं.
गलत हैं नायडू स्टालिन औरतें बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं
महिलाएं बड़ी बड़ी बाधाएं पार कर उस मुकाम पर पहुंची हैं जहां उन का अपना अलग अस्तित्व, पहचान और स्वाभिमान वगैरह होते हैं. ऐसा आजादी के तुरंत बाद नेहरू सरकार के बनाए कानूनों के अलावा शिक्षा और जागरूकता के चलते संभव हो पाया. महिलाओं ने अब इस बात से साफ इनकार कर दिया कि वे सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं बने रहना चाहती हैं.
सांई बाबा विवाद दानदक्षिणा का चक्कर
वाराणसी के हिंदू मंदिरों से सांईं बाबा की मूर्तियों को हटाने की सनातनी मुहिम फुस हो कर रह गई है तो इस की अहम वजह यह है कि हिंदू ही इस मसले पर दोफाड़ हैं. लेकिन इस से भी बड़ी वजह पंडेपुजारियों का इस में ज्यादा दिलचस्पी न लेना रही क्योंकि उन की दक्षिणा मारी जा रही थी.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा भाग-5
1990 के बाद का दौर भारत में भारी उथलपुथल भरा रहा. एक तरफ नई आर्थिक नीतियों ने कौर्पोरेट को नई जान दी, दूसरी तरफ धर्म का बोलबाला अपनी ऊंचाइयों पर था. धार्मिक और आर्थिक इन बदलावों ने भारत के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को बदल कर रख दिया, जिस का असर संसद पर भी पड़ा.
न्याय की मूरत सूरत बदली क्या सीरत भी बदलेगी
भावनात्मक तौर पर 'न्याय की देवी' के भाव बदलने की सीजेआई की कोशिश अच्छी है, लेकिन व्यवहार में इस देश में निष्पक्ष और त्वरित न्याय मिलने व कानून के प्रभावी अनुपालन की कहानी बहुत आश्वस्त करने वाली नहीं है.