दुष्यंत प्रताप सिंह छोटी उम्र में संगीत सीखने के लिए मुंबई आए थे. मुंबई में उन्होंने सुरेश वाडेकर से संगीत की तालीम ली. 'अंताक्षरी' जैसे रिऐलिटी शो का हिस्सा बने. उस के बाद उन्हें कई सीरियलों में अभिनय करने का मौका मिला. अब बौलीवुड में दुष्यंत प्रताप सिंह की गिनती फिल्म निर्देशक के रूप में होती है.
बतौर निर्देशक उन की 2 फिल्में 'हंड्रेड बौक्स' और 'त्राहिमाम' रिलीज हो चुकी हैं जबकि फीचर फिल्म, लघु फिल्म और वैब सीरीज सहित उन के 9 प्रोजैक्ट तैयार हैं. उन के निर्देशन में बनी नई फिल्म 'जिंदगी शतरंज है' भी प्रदर्शित होने जा रही है. यहां प्रस्तुत हैं दुष्यंत प्रताप सिंह से हुई बातचीत के अंश.
1997 में मुंबई आने के बाद फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जर्नी के बारे में वे कहते हैं, "मुंबई में मैं ने संघर्ष भी किया और कुछ समय ने भी साथ दिया. एक वक्त वह भी आया जब मैं ने सोचा कि मैं अपने गृहशहर आगरा जा कर अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू कर वहीं पर काम करूं पर कहते हैं कि आप का समय आप को वहीं खींच कर लाता है जहां आप को काम कर उपलब्धियां हासिल होनी होती हैं.
"मैं ने हर काम मुंबई में किया. मैं ने 1997 में जब मुंबई में कदम रखा, उस के दूसरे दिन से मेरे पास काम था. मुंबई के संगीतकारों, लेखक, निर्माता, निर्देशक सभी का सहयोग मिला, जिस के लिए मैं उन का शुक्रगुजार हूं."
जब उन से पूछा गया कि आप ने संगीत में शुरुआत करने के बाद निर्देशक बनने का चुनाव क्यों किया तो वे कहते हैं, "मैं ने अपने कैरियर की शुरुआत गायक के रूप में की थी. 'अंताक्षरी' व 'मेरी आवाज सुनो' जैसे संगीत के टीवी कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. सुरेश वाडेकर से संगीत सीखा.
"इसी के साथ यहां लोगों से मेरे रिश्ते बनते गए, जिस के चलते मुझे अभिनय करने के अवसर मिलने लगे. कुछ सीरियलों में अभिनय भी किया. लेकिन 1999 में मैं ने सोचा कि मैं क्या कर रहा हूं, मैं यहां संगीत जगत में कुछ रचनात्मक व बड़ा काम करने आया था, अभिनय करने नहीं.
Denne historien er fra February First 2023-utgaven av Sarita.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra February First 2023-utgaven av Sarita.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
यूट्यूबिया पकवान मांगे डाटा
कुछ नया बनाने के चक्कर में मिसेज यूट्यूब छान मारती हैं और इधर हम 'आजा वे माही तेरा रास्ता उड़ीक दियां...' गाना गाते रसोई की ओर टकटकी लगाए इंतजार में बैठे हैं कि शायद अब कुछ खाने को मिल जाए.
पेरैंटल बर्नआउट इमोशनल कंडीशन
परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्न आउट का शिकार हो रहे हैं.
एक्सरसाइज करते समय घबराहट
ऐक्सरसाइज करते समय घबराहट महसूस होना शारीरिक और मानसिक कारणों से हो सकता है. यह अकसर अत्यधिक दिल की धड़कन, सांस की कमी या शरीर की प्रतिक्रिया में असंतुलन के कारण होता है. मानसिक रूप से चिंता या ओवरथिंकिंग इसे और बढ़ा सकती है.
जब फ्रैंड अंधविश्वासी हो
अंधविश्वास और दोस्ती, क्या ये दो अलग अलग रास्ते हैं? जब दोस्त तर्क से ज्यादा टोटकों में विश्वास करने लगे तो किसी के लिए भी वह दोस्ती चुनौती बन जाती है.
संतान को जन्म सोचसमझ कर दें
क्या बच्चा पैदा कर उसे पढ़ालिखा देना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करना है? बच्चा पैदा करने और अपनी जिम्मेदारियां निभाते उसे सही भविष्य देने में मदद करने में जमीन आसमान का अंतर है.
बढ़ रहे हैं ग्रे डिवोर्स
आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.
ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और मोदी
मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है. इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवड़ियां बहुतों में बंटती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी व नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है.
विश्वगुरु कौन भारत या चीन
चीन काफी लंबे समय से तमाम विवादों से खुद को दूर रख रहा है जिन में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैरजरूरी रूप से उलझे हुए हैं. चीन के साथ अन्य देशों के सीमा विवाद, सैन्य झड़पों या कार्रवाइयों में भारी कमी आई है. वह इस तरफ अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता. इस वक्त उस का पूरा ध्यान अपने देश की आर्थिक उन्नति, जनसंख्या और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने की तरफ है.
हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.