केद्र की भाजपा सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी कुछ इस तरह आत्मविश्वास से लबरेज दिखाई देते हैं मानो लोकतांत्रिक देश में चुनी हुई सरकार नहीं, बल्कि सैकड़ों साल पहले का, तलवार की नोंक पर व अपनी भुजाओं की ताकत के भरोसे, कोई चक्रवर्ती राजा गद्दी पर विराजमान हो.
लोकतांत्रिक व्यवस्था में सब की भूमिका संविधान के तहत निर्धारित की गई है. कार्यपालिका, न्यायपालिका, व्यवस्थापिका सब के अपने-अपने कामकाज हैं. मगर नरेंद्र मोदी के कुछ निर्णय इतने विवादित हो जाते हैं कि देश के उच्चतम न्यायालय तक को इस का संज्ञान लेना पड़ता है.
बहुचर्चित मामला
ऐसा ही एक बहुचर्चित प्रकरण प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के सुप्रीमो संजय मिश्रा का देश में सुर्खियां बटोर रहा है. केंद्र सरकार लगातार ईडी प्रमुख के रूप में संजय मिश्रा की तरफदारी करती रही है और चाहती है कि वे कम से कम नवंबर 2023 तक पद पर बने रहें. मगर इसे सुप्रीम कोर्ट ने अवैध ठहरा कर स्पष्ट कर दिया है कि देश में कानून नाम की व्यवस्था सर्वोपरि है जिस के संरक्षण में संविधान के तहत देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था निरपेक्ष भाव से चलती रहेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई को अपने आदेश में कड़े शब्दों में कहा कि ईडी निदेशक संजय मिश्रा का कार्यकाल 15 सितंबर तक ही चलेगा. इस के बाद उन के कार्यकाल को विस्तार देने का सरकारी आवेदन स्वीकार नहीं किया जाएगा.
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वाराणसी के हिंदू मंदिरों से सांईं बाबा की मूर्तियों को हटाने की सनातनी मुहिम फुस हो कर रह गई है तो इस की अहम वजह यह है कि हिंदू ही इस मसले पर दोफाड़ हैं. लेकिन इस से भी बड़ी वजह पंडेपुजारियों का इस में ज्यादा दिलचस्पी न लेना रही क्योंकि उन की दक्षिणा मारी जा रही थी.
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