![वाहन बेचने पर न करें यह गलती वाहन बेचने पर न करें यह गलती](https://cdn.magzter.com/1338812051/1697612863/articles/k7UXS-nNk1698753940398/1698754137496.jpg)
छोटे शहरों, महानगरों और गांवों तक में निजी वाहन अब लोगों की जरूरत बन गए हैं. भले मैट्रो, बस व ट्रेन से लोग रोजमर्रा का सफर करते हों पर बाइक से ले कर कार लगभग हर दूसरे घरपरिवार में मौजूद है.
वाहन व्यक्ति की संपत्ति का हिस्सा है. वाहन ने हमारी जिंदगी तेज की है. इस ने सुविधा और सहूलियत दी है तो हर व्यक्ति चाहता है कि उस के पास अपना खुद का वाहन हो चाहे वह सैकंडहैंड ही क्यों न हो.
कई मौकों पर वाहन खरीदनाबेचना पड़ जाता है. ऐसे में वाहन बेचते व खरीदते लेखाजोखा से जुड़े काम होते हैं. यह काम सरकार के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय के माध्यम से होते हैं. किसी भी वाहन को बेचने पर उस के मालिक द्वारा खरीदने वाले व्यक्ति के नाम पर वाहन को ट्रांसफर करवाया जाता है. ऐसे ट्रांसफर पर सरकार को ड्यूटी भी प्राप्त होती है जो राज्य सरकार का राजस्व होता है.
कई लोग इसे झंझट वाला काम समझते हैं और आपसी विश्वास में इस ट्रांसफर वाली प्रक्रिया से बचने की कोशिश करते हैं. जैसे वे स्टांप के माध्यम से अपने परिचित या जानपहचान वाले को अपना वाहन बेच देते हैं. कई बार तो बिना स्टांप के ही ऐसे ही बेच देते हैं. इस में सरकार को राजस्व का नुकसान तो होता ही है, उस व्यक्ति को भी नुकसान होता है जिस के नाम पर वाहन रजिस्टर्ड होता है.
कानून कहता है जिस डेट को वाहन को बेचा गया है उस के 14 दिनों के भीतर खरीदने वाले व्यक्ति को उस वाहन को अपने नाम पर रजिस्टर्ड करवाना होता है. यह प्रावधान मोटर व्हीकल एक्ट 1988 की धारा 50 के अंतर्गत है. हां, यदि खरीदने व बेचने वाले का राज्य अलगअलग है तो यह अवधि 45 दिनों की होती है पर इन दिनों के भीतर वाहन रजिस्टर्ड करवा लेना जरूरी होता है. इसे ही वाहन के स्वामित्व का ट्रांसफर कहा जाता है.
क्या होता है ट्रांसफर
Bu hikaye Sarita dergisinin October First 2023 sayısından alınmıştır.
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मौन का मूलमंत्र जिंदगी को बनाए आसान
हम बचपन में बोलना तो सीख लेते हैं मगर क्या बोलना है और कितना बोलना है, यह सीखने के लिए पूरी उम्र भी कम पड़ जाती है. मौन रहना आज के दौर में ध्यान केंद्रित करने की तरह ही है.
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सरकार थोप रही मोबाइल
सरकार द्वारा कई स्कीमों को चलाया जा रहा है. बिना एडवांस मोबाइल फोन और इंटरनैट सेवा की इन स्कीमों का फायदा उठाना असंभव है. ऐसा अनावश्यक जोर क्या सही है?
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सास और और बहू को एकदूसरे की भूमिका को स्वीकार करना चाहिए. सास पुरानी परंपराओं का पालन करते हुए बहू को सिखा सकती है और बहू नई सोच व नए दृष्टिकोण से घर को बेहतर बना सकती है.
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अमेरिका में भी पनप रहा ब्राह्मण व बनिया गठजोड़
डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही अमेरिका में एक नए दौर की शुरुआत हो चुकी है जिसे ले कर हर कोई आशंकित है कि अब लोकतंत्र को हाशिए पर रख धार्मिक एजेंडे पर अमल होगा.
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यह वह दौर हैं जब पेरैंट्स की सेवा न करने वाली संतानों की अदालतें तक खिंचाई कर रही हैं लेकिन मांबाप की दिल से सेवा करने वाली संतान के लिए जायदाद में ज्यादा हिस्सा देने पर वे भी अचकचा जाती हैं क्योंकि कानून में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है. क्या यह ज्यादती नहीं?
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युवाओं के सपनों के घर पर डाका
नौकरीपेशा होम लोन ले कर अपने सपनों का आशियाना खरीद लेते हैं. लेकिन यहां समस्या तब आती है जब किसी यूइत में वे लोन नहीं चुका पाते. ऐसे में कई बार उन्हें अपने घर से हाथ धोना पड़ता है.
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मेलजोल के अवसर बुफे पार्टी
बूफे पार्टी में मेहमान भोजन और अच्छे समय का आनंद लेने के साथसाथ सोशल गैदरिंग के चलन को भी जीवित रखते हैं. यह अवसर न केवल खानपान के लिए होता है बल्कि यह लोगों के बीच बातचीत, हंसीमजाक और आपसी विचारों के आदानप्रदान का एक साधन भी है.
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अल्लू अर्जुन को जेल भगवान दोषमुक्त
एक तरह के हादसे पर कानून दो तरह से कैसे काम कर सकता है? क्या यह न्याय और संविधान दोनों का अपमान नहीं ?
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ऊंचे ओहदे वालों में अकड़ क्यों
कुछ लोगों में अपने रुतबे को ले कर अहंकार होता है. उन्हें लगता है कि उन का ओहदा, उन का पद बैस्ट है. वे सुपीरियर हैं. यह सोच अहंकार और ईगो लाती है जो इंसान के व्यवहार में अड़चन डालती है.
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बंटोगे तो कटोगे वाला नारा प्रधान राष्ट्र
देश नारा प्रधान है. काम भले कुछ न हो रहा हो पर पार्टियां और सरकारों द्वारा उछाले नारों की खुमारी जनता पर खूब छाई रहती है.