त्योहार की खुशियां डिफरैंट कास्ट, रंग, रिलीजन में बांटे
Sarita|October Second 2023
त्योहारों की खुशियां तभी हैं जब ये मिलजुल कर सौहार्द से मनाए जाएं, फिर चाहे वह अलग मजहब, जाति, रंग के साथ मनाना हो. आपसी प्रेमभाव रहेगा तो त्योहार में तनाव नहीं होगा और त्योहार अच्छे से मनाया भी जा सकेगा.
शैलेंद्र
त्योहार की खुशियां डिफरैंट कास्ट, रंग, रिलीजन में बांटे

"करीब 25 साल पहले की बात है. मेरे गांव में हिंदू और मुसलिम के साथ ही साथ पिछड़ी और दलित जाति के लोग रहते थे. मेरा गांव राजधानी लखनऊ से 40 किलोमीटर दूर है. नंदौली गांव की होली मशहूर है. जब होली, दीवाली होती थीं तो मुसलिम बिरादरी के लोग इन त्योहारों में खुल कर हिस्सा लेते थे. गांव में कोई बड़ा मंदिर नहीं था. एक छोटा मंदिर उपेक्षित सा था. वहां गांव के एकदो लोग छोड़ कोई पूजापाठ करने नहीं जाता था. कोई मसजिद नहीं थी.

"गांव के देवीदेवताओं के पूजा जुलूस में सभी हिस्सा लेते थे. होली में घरघर जा कर होली मिलने का रिवाज था. उस दिन घर के लोग भी तैयार रहते थे कि उन के यहां होली मिलने लोग आते थे. इसलिए तैयारी में कुछ नाश्ता, मिठाई, पान जैसी चीजें स्वागत में रखते थे. किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं था. इसी तरह से ईद में भी होती थी. गांव के ज्यादातर लोग शाकाहारी थे तो बकरीद बहुत हर्ष के साथ नहीं मनाई जाती थी.

“मुसलिम बिरादरी के लोग भी इस बात का ध्यान रखते थे कि कोई गड़बड़ न हो. एक त्योहार था जिस में गन्ने की पूजा की जाती थी. गन्ने की खेती दोचार परिवारों के किसान ही करते थे. ऐसे में जिस घर में गन्ना नहीं होता था उस के घर गन्ने मुफ्त में भेजे जाते थे. इसी तरह त्योहार में किसी के घर खाने की दिक्कत न हो, इस का खयाल रखा जाता था. जातीय या धार्मिक आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता था.

“शहर और दूसरी जगहों की हवा से यह गांव भी अछूता नहीं रहा. 15 से 20 साल के बदलते माहौल ने यहां की हवा को भी बदल दिया है. तनाव नहीं होता पर अब पहले जैसी भावना नहीं रही. गांव में मसजिद और मंदिर दोनों हो गए हैं. राजनीति भी गांव के माहौल का हिस्सा बन गई है. इस के बाद भी हालात बहुत नहीं बिगड़े हैं. लोग एकदूसरे की मदद करते है," शिक्षक और समाजसेवा में सक्रिय आई पी सिंह आगे कहते हैं, “त्योहार की खुशियां तभी हैं जब हर जाति और धर्म के लोग मिल कर मनाएं. त्योहार एकदूसरे को जोड़ने का काम करते हैं. आने वाले त्योहारों में हम सब को यही प्रयास करना चाहिए."

कानून व्यवस्था के लिए खतरा बनते त्योहार

This story is from the October Second 2023 edition of Sarita.

Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.

This story is from the October Second 2023 edition of Sarita.

Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.

MORE STORIES FROM SARITAView All
अच्छा लगता है सिंगल रहना
Sarita

अच्छा लगता है सिंगल रहना

शादी को ले कर लड़कियों में पुराने रूढ़िगत विचार नहीं रहे. जौब, सैल्फ रिस्पैक्ट, बराबरी ये वे पैमाने हैं जिन्होंने उन्हें देर से शादी करने या नहीं करने के औप्शन दे डाले हैं.

time-read
10 mins  |
December First 2024
मां के पल्लू से निकलें
Sarita

मां के पल्लू से निकलें

पत्नी चाहती है कि उस का पति स्वतंत्र व आत्मनिर्भर हो. ममाज बौयज पति के साथ पत्नी खुद को रिश्ते में अकेला और उपेक्षित महसूस करती है.

time-read
4 mins  |
December First 2024
पोटैशियम और मैग्नीशियम शरीर के लिए कितने जरूरी
Sarita

पोटैशियम और मैग्नीशियम शरीर के लिए कितने जरूरी

जिन लोगों को आहार से मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे अति आवश्यक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाते और शरीर में इन की कमी हो जाती है, उन में कई प्रकार की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा हो सकता है.

time-read
8 mins  |
December First 2024
क्या शादी छिपाई जा सकती है
Sarita

क्या शादी छिपाई जा सकती है

शादी का छिपाना अब पहले जैसा आसान नहीं रहा क्योंकि अब इस पर कानूनी एतराज जताए जाने लगे हैं. हालांकि कई बार पहली या दूसरी शादी की बात छिपाना मजबूरी भी हो जाती है. इस की एक अहम वजह तलाक के मुकदमों में होने वाली देरी भी है जिस के चलते पतिपत्नी जवान से अधेड़ और अधेड़ से बूढ़े तक हो जाते हैं लेकिन उन्हें तलाक की डिक्री नहीं मिलती.

time-read
6 mins  |
December First 2024
साइकोएक्टिव ड्रग्स जैसा धार्मिक अंधविश्वास
Sarita

साइकोएक्टिव ड्रग्स जैसा धार्मिक अंधविश्वास

एक परिवार सायनाइड खा लेता है, एक महिला अपने लड्डू गोपाल को स्कूल भेजती है, कुछ बच्चे काल्पनिक देवताओं को अपना दोस्त मानते हैं. इन घटनाओं के पीछे छिपा है धार्मिक अंधविश्वास का वह असर जो मानव की सोच व व्यवहार को बुरी तरह प्रभावित करता है.

time-read
7 mins  |
December First 2024
23 नवंबर के चुनावी नतीजे भाजपा को जीत पर आधी
Sarita

23 नवंबर के चुनावी नतीजे भाजपा को जीत पर आधी

जून से नवंबर सिर्फ 5 माह में महाराष्ट्र व झारखंड की विधानसभाओं और दूसरे उपचुनावों में चुनावी समीकरण कैसे बदल गया, लोकसभा चुनावों में मुंह लटकाने वाली पार्टी के चेहरे पर मुसकान आ गई लेकिन कुछ काटे चुभे भी.

time-read
10+ mins  |
December First 2024
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा
Sarita

1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा

क्या कानून हमेशा समाज सुधार का रास्ता दिखाते हैं या कभीकभी सत्ता के इरादों का मुखौटा बन जाते हैं? 2014 से 2024 के बीच बने कानूनों की तह में झांकें तो भारतीय लोकतंत्र की तसवीर कुछ अलग ही नजर आती है.

time-read
8 mins  |
December First 2024
अदालती पेंचों में फंसी युवतियां
Sarita

अदालती पेंचों में फंसी युवतियां

आज भी कानून द्वारा थोपी जा रही पौराणिक पाबंदियों और नियमकानूनों के चलते युवतियों का जीवन दूभर है. मुश्किल तब ज्यादा खड़ी हो जाती है जब कानून बना वाले और लागू कराने वाले असल नेता व जज उन्हें राहत देने की जगह धर्म का पाठ पढ़ाते दिखाई देते हैं.

time-read
8 mins  |
December First 2024
"पुरुष सत्तात्मक सोच बदलने पर ही बड़ा बदलाव आएगा” बिनायफर कोहली
Sarita

"पुरुष सत्तात्मक सोच बदलने पर ही बड़ा बदलाव आएगा” बिनायफर कोहली

'एफआईआर', 'भाभीजी घर पर हैं', 'हप्पू की उलटन पलटन' जैसे टौप कौमेडी फैमिली शोज की निर्माता बिनायफर कोहली अपने शोज के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का संदेश देने में यकीन रखती हैं. वह अपने शोज की महिला किरदारों को गृहणी की जगह वर्किंग और तेजतर्रार दिखाती हैं, ताकि आज की जनरेशन कनैक्ट हो सके.

time-read
3 mins  |
November Second 2024
पतिपत्नी के रिश्ते में बदसूरत मोड़ क्यों
Sarita

पतिपत्नी के रिश्ते में बदसूरत मोड़ क्यों

पतिपत्नी के रिश्ते के माने अब सिर्फ इतने भर नहीं रह गए हैं कि पति कमाए और पत्नी घर चलाए. अब दोनों को ही कमाना और घर चलाना पड़ रहा है जो सलीके से हंसते खेलते चलता भी है. लेकिन दिक्कत तब खड़ी होती है जब कोई एक अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते अनुपयोगी हो कर भार बनने लगता है और अगर वह पति हो तो उस का प्रताड़ित किया जाना शुरू हो जाता है.

time-read
7 mins  |
November Second 2024