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मध्य प्रदेश में नए साल की शुरुआत रिश्वतखोरी से हुई थी जब लोकायुक्त पुलिस ने ग्वालियर के शताब्दिपुरम इलाके में एक पटवारी पंकज खड़गे को 5 हजार रुपए की घूस लेते रंगेहाथों पकड़ा था. मामला दूसरे हजारों लाखों मामलों जैसा ही था. भिंड जिले की गोहद तहसील के विशवारी गांव के एक किसान रवि बघेल को अपनी दादी राजाबेटी के नाम की जमीन का नामांतरण करवाना था. अब वह पटवारी भी क्या जो बगैर दक्षिणा के अपनी ड्यूटी ईमानदारी से बजाते माथे पर कलंक का टीका लगा ले. लिहाजा, उस ने 15 हजार रुपए मांगे. दूसरे हजारोंलाखों मामलों की तरह इस में भी भावताव और सौदेबाजी हुई और मामला 7 हजार रुपए में तय हुआ.
किसान ने बतौर पेशगी 2 हजार रुपए दे भी दिए लेकिन साथ ही लोकायुक्त पुलिस में शिकायत भी कर दी. नतीजतन साल के पहले ही दिन पटवारी साहब रंगेहाथों धरे गए. लेकिन इस का यह मतलब नहीं कि इस से घूसखोरी खत्म या कम हो गई.
मध्य प्रदेश में घूसखोरी बदस्तूर जारी है और आगे भी रहने की पूरी 'गारंटी' है. 2024 के पहले दिन की तरह ही साल 2023 के आखिरी दिन भी भिंड में ही एक घूसखोर सब इंजीनियर को 25 हजार रुपए की रिश्वत लेते पकड़ा गया था. आरईएस यानी ग्रामीण यांत्रिकी विभाग के इस सब इंजीनियर का नाम दीपक गर्ग है. इस मामले में शिकायतकर्ता ने मनरेगा के तहत गांव में तालाब बनाया था जिस का मूल्यांकन उक्त सब इंजीनियर को करना था जिस से कि उसे भुगतान हो सके.
सौदा 72 हजार रुपए में तय हुआ था लेकिन ठेकेदार ने ईओडब्ल्यू में शिकायत कर दी, फिर फिल्मी स्टाइल में कार्रवाई हुई और इंजीनियर साहब के साल का अंत बुरा हुआ. बाद में खुलासा हुआ कि रोजगार सहायक संजीव गुर्जर दीपक गर्ग को 2 लाख 20 हजार रुपए पहले भी दे चुका है लेकिन उस का मुंह सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता ही जा रहा था जिस से तंग आ कर उस ने शिकायत कर दी. घूसखोरी के इस मामले में रिश्वत एक पैट्रोल पंप पर दी गई थी जो ऐसे मामलों के लिए बड़ी मुफीद जगह होती है.
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मौन का मूलमंत्र जिंदगी को बनाए आसान
हम बचपन में बोलना तो सीख लेते हैं मगर क्या बोलना है और कितना बोलना है, यह सीखने के लिए पूरी उम्र भी कम पड़ जाती है. मौन रहना आज के दौर में ध्यान केंद्रित करने की तरह ही है.
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सरकार द्वारा कई स्कीमों को चलाया जा रहा है. बिना एडवांस मोबाइल फोन और इंटरनैट सेवा की इन स्कीमों का फायदा उठाना असंभव है. ऐसा अनावश्यक जोर क्या सही है?
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अमेरिका में भी पनप रहा ब्राह्मण व बनिया गठजोड़
डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही अमेरिका में एक नए दौर की शुरुआत हो चुकी है जिसे ले कर हर कोई आशंकित है कि अब लोकतंत्र को हाशिए पर रख धार्मिक एजेंडे पर अमल होगा.
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युवाओं के सपनों के घर पर डाका
नौकरीपेशा होम लोन ले कर अपने सपनों का आशियाना खरीद लेते हैं. लेकिन यहां समस्या तब आती है जब किसी यूइत में वे लोन नहीं चुका पाते. ऐसे में कई बार उन्हें अपने घर से हाथ धोना पड़ता है.
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बूफे पार्टी में मेहमान भोजन और अच्छे समय का आनंद लेने के साथसाथ सोशल गैदरिंग के चलन को भी जीवित रखते हैं. यह अवसर न केवल खानपान के लिए होता है बल्कि यह लोगों के बीच बातचीत, हंसीमजाक और आपसी विचारों के आदानप्रदान का एक साधन भी है.
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एक तरह के हादसे पर कानून दो तरह से कैसे काम कर सकता है? क्या यह न्याय और संविधान दोनों का अपमान नहीं ?
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कुछ लोगों में अपने रुतबे को ले कर अहंकार होता है. उन्हें लगता है कि उन का ओहदा, उन का पद बैस्ट है. वे सुपीरियर हैं. यह सोच अहंकार और ईगो लाती है जो इंसान के व्यवहार में अड़चन डालती है.
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बंटोगे तो कटोगे वाला नारा प्रधान राष्ट्र
देश नारा प्रधान है. काम भले कुछ न हो रहा हो पर पार्टियां और सरकारों द्वारा उछाले नारों की खुमारी जनता पर खूब छाई रहती है.