मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव 2024 में दो अलगअलग इतिहास बने. भाजपा ने प्रदेश की सभी 29 सीटों पर जीत हासिल कर इतिहास रचा तो कांग्रेस ने सभी सीटें गंवा कर इतिहास बनाया. भाजपा ने अनुशासित संगठन के चलते इतिहास बनाया तो कांग्रेस ने कार्यकर्ताओं व नेताओं का भरोसा तोड़ कर उन की उपेक्षा करते हुए यह इतिहास रचा.
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ विधानसभा चुनाव 2023 के बाद प्रदेश कांग्रेस के अपने समर्थकों और नेता एवं कार्यकर्ताओं का भरोसा अर्जित नहीं कर पाए, जो उन्होंने 208 में प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभालने के बाद पाया था वहीं उन के स्थान पर पीढ़ी परिवर्तन के चलते नएनवेले अध्यक्ष बने जीतू पटवारी भी प्रदेश के नेताओं और कार्यकर्ताओं का दिल जीतने में पूरी तरह असफल रहे. दोनों ही नेताओं की असफलता के पीछे एकजैसे कारण भी नजर आए. दोनों नेताओं ने इस चुनाव में "मैं, मेरा और उन की अपनी अकड़"' को अपने ऊपर इस कदर अंगीकार किया कि नेता, कार्यकर्ता उन से दूर होते चले गए.
चाहे प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया रही हो या फिर संगठन में काम बांटने को ले कर हो, इन्होंने कर्मठ कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की, जिस के चलते 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की यह दशा हुई कि वह दो सीटों पर तो प्रत्याशी ही खड़े नहीं कर पाई और जिन सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए वहां मतदान होने तक साफ नजर आया कि मैदान में कांग्रेस है ही नहीं. कांग्रेस पूरी तरह मैदान से बाहर नजर आई.
कुछ प्रत्याशी इस बात का इंतजार करते रहे कि उन के क्षेत्रों में संगठन सक्रियता दिखाए, मगर संगठन ही नहीं था तो सक्रियता किस तरह दिखाई जाती. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस हारी कहां, वह तो चुनाव लड़ी ही नहीं. जब चुनाव नहीं लड़ी तो हार किस बात की.
20१8 में कमलनाथ ने बड़े तामझाम के साथ मध्य प्रदेश की कमान संभाली थी. उस वक्त नेता और कार्यकर्ताओं का जोश भी उन के साथ था और भरोसा भी. यही कारण था कि मध्य प्रदेश में वे 45 साल बाद कांग्रेस की सरकार बनाने में सफल रहे थे. मगर उन की यह सफलता उन के कार्य और व्यवहार के चलते मात्र १8 महीने ही स्थिर रही.
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