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वास्तु से संबंधित कई ग्रंथ 'शिल्पशास्त्र' के नाम से भी प्रचलित हैं. उन से ऐसा प्रभाव बनता है मानो वे अंधविश्वास, पुरोहितवाद और ज्योतिष की खिचड़ी न हो कर शुद्ध शिल्प से संबंधित हों. एक ऐसा 'शिल्पशास्त्रम्' है जिसे 'ओड़ सूत्रधार बडरी महाराणा विरचित' बताया गया है.
यह ग्रंथ सब से पहले 927 में इंग्लिश अनुवाद सहित शांतिनिकेतन से छपा था और फिर हिंदी अनुवाद सहित वाराणसी से 2006 में छपा.
इस में शिल्प की कहीं कोई बात नहीं. घर कैसे बनाएं, कौन सी सामग्री का प्रयोग हो, अलमारी कहां और कैसे हो, घर में कहां क्या बने और कैसे बने इस के बारे में 'शिल्पशास्त्रम्' बिलकुल मौन है. इतना ही नहीं, जहां घर बनाने के बारे में कहीं थोड़ीबहुत चर्चा हुई भी है वहां इस में न कहीं रसोई का जिक्र है, न स्टोर का, न सीढ़ी की बात है, न बैठक की, न खिड़की की बात है, न रोशनदान की, न शौचालय का जिक्र है, न अलमारी का. उस युग में पंप नहीं होते थे, इसलिए ऊपर छत पर टंकी की बात तो हो ही नहीं सकती. पाइप भी नहीं था. बाथरूम घर के अंदर होने का सवाल ही नहीं था.
घर के अतिरिक्त और हर इमारत की बाबत भी 'शिल्पशास्त्रम्' मूक बना हुआ है. इस में न कहीं दुकान की चर्चा है, न स्कूल की, न अस्पताल की चर्चा है, न दफ्तर की. शिल्पशास्त्रम् को इन चीजों के बारे में ऐसा लगता है, कुछ भी ज्ञात नहीं. फिर भी इस तरह के अर्थशास्त्र को वास्तु कह कर बचा जाता है.
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मौन का मूलमंत्र जिंदगी को बनाए आसान
हम बचपन में बोलना तो सीख लेते हैं मगर क्या बोलना है और कितना बोलना है, यह सीखने के लिए पूरी उम्र भी कम पड़ जाती है. मौन रहना आज के दौर में ध्यान केंद्रित करने की तरह ही है.
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सरकार थोप रही मोबाइल
सरकार द्वारा कई स्कीमों को चलाया जा रहा है. बिना एडवांस मोबाइल फोन और इंटरनैट सेवा की इन स्कीमों का फायदा उठाना असंभव है. ऐसा अनावश्यक जोर क्या सही है?
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सास बदली लेकिन नजरिया नहीं
सास और और बहू को एकदूसरे की भूमिका को स्वीकार करना चाहिए. सास पुरानी परंपराओं का पालन करते हुए बहू को सिखा सकती है और बहू नई सोच व नए दृष्टिकोण से घर को बेहतर बना सकती है.
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अमेरिका में भी पनप रहा ब्राह्मण व बनिया गठजोड़
डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही अमेरिका में एक नए दौर की शुरुआत हो चुकी है जिसे ले कर हर कोई आशंकित है कि अब लोकतंत्र को हाशिए पर रख धार्मिक एजेंडे पर अमल होगा.
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किस संतान को मिले संपत्ति पर ज्यादा हक
यह वह दौर हैं जब पेरैंट्स की सेवा न करने वाली संतानों की अदालतें तक खिंचाई कर रही हैं लेकिन मांबाप की दिल से सेवा करने वाली संतान के लिए जायदाद में ज्यादा हिस्सा देने पर वे भी अचकचा जाती हैं क्योंकि कानून में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है. क्या यह ज्यादती नहीं?
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युवाओं के सपनों के घर पर डाका
नौकरीपेशा होम लोन ले कर अपने सपनों का आशियाना खरीद लेते हैं. लेकिन यहां समस्या तब आती है जब किसी यूइत में वे लोन नहीं चुका पाते. ऐसे में कई बार उन्हें अपने घर से हाथ धोना पड़ता है.
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मेलजोल के अवसर बुफे पार्टी
बूफे पार्टी में मेहमान भोजन और अच्छे समय का आनंद लेने के साथसाथ सोशल गैदरिंग के चलन को भी जीवित रखते हैं. यह अवसर न केवल खानपान के लिए होता है बल्कि यह लोगों के बीच बातचीत, हंसीमजाक और आपसी विचारों के आदानप्रदान का एक साधन भी है.
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एक तरह के हादसे पर कानून दो तरह से कैसे काम कर सकता है? क्या यह न्याय और संविधान दोनों का अपमान नहीं ?
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ऊंचे ओहदे वालों में अकड़ क्यों
कुछ लोगों में अपने रुतबे को ले कर अहंकार होता है. उन्हें लगता है कि उन का ओहदा, उन का पद बैस्ट है. वे सुपीरियर हैं. यह सोच अहंकार और ईगो लाती है जो इंसान के व्यवहार में अड़चन डालती है.
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बंटोगे तो कटोगे वाला नारा प्रधान राष्ट्र
देश नारा प्रधान है. काम भले कुछ न हो रहा हो पर पार्टियां और सरकारों द्वारा उछाले नारों की खुमारी जनता पर खूब छाई रहती है.