![संतान को जन्म सोचसमझ कर दें संतान को जन्म सोचसमझ कर दें](https://cdn.magzter.com/1338812051/1735122792/articles/DOsp9pyVi1735293700334/1735294002121.jpg)
आज के समय में बच्चा पैदा करना, उस की परवरिश करना, उसे शिक्षित करना लगभग 25 वर्षों के लंबे समय का प्रोजैक्ट होता है, जिस में नर्सरी से ले कर 12वीं क्लास तक और उस के बाद कालेज की पढ़ाई, कोचिंग, होस्टल, जेब खर्च, वाहन, रहनसहन, होटल पार्टी, घूमना फिरना आदि शामिल होते हैं. यदि आज के समय में अनुमान लगाया जाए तो लगभग 2 करोड़ रुपए से कुछ ज्यादा ही खर्च हो सकता है.
इस के अलावा शिक्षा के लिए ऋण, यदि विदेश गए तो विदेश की शिक्षा का खर्च, वीजापासपोर्ट, आनाजाना जैसी सभी गतिविधियां भारी खर्च वाली होती हैं. पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं तो भी और चाहे वे मध्यवर्ग या उच्चमध्यवर्ग के हों, सभी को बहुत भारी पड़ता है. कम से कम एक या दो संतानें होनी जरूरी हैं, यह लगभग सभी पारिवारिक व सामाजिक लोगों का मानना है.
जो विवाहित दंपती हैं, उन्हें संतान को जन्म देने से पहले वर्तमान समय, काल, परिस्थिति के मुताबिक योजना बनाना बहुत जरूरी है, जैसे आज हम कितना कमाते हैं, आगे हम कितना कमा पाएंगे, हमारी शारीरिक व मानसिक कार्यक्षमता कैसी रहेगी.
यह अनुमान बहुत जरूरी है. जिस दिन बच्चा गर्भ में आता है, उस दिन से ही खर्चे बढ़ जाते हैं, बच्चे की मां का चिकित्सा परीक्षण, दवा आदि के खर्चे. किसी भी बहुत अच्छे अस्पताल में डिलीवरी कराना, चाहे नौर्मल हो या सिजेरियन, अस्पताल का खर्च दोतीन लाख रुपए होना सामान्य बात है. अधिकांश महिलाएं नौकरीपेशा होती हैं, इसलिए संतान होने के बाद 6 माह या उस से अधिक का नौकरी से अवकाश लेना या नौकरी छोड़ना पड़ता है. अब संयुक्त परिवार नहीं हैं कि बच्चे को दादादादी व चाचीबूआ आदि संभाल सकें.
ज्यादातर विवाहित दंपती अकेले ही रहते हैं. यदि शिशु अबोध है और शिशु की मां को नौकरी भी करनी है तो बच्चे को किसी बेबी क्रैच में छोड़ा जाए या घर पर कोई मेड रखी जाए, दोनों का ही खर्च उठाना होता है.
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![मौन का मूलमंत्र जिंदगी को बनाए आसान मौन का मूलमंत्र जिंदगी को बनाए आसान](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/871/1990019/LowUfbRDd1739346630309/1739346915320.jpg)
मौन का मूलमंत्र जिंदगी को बनाए आसान
हम बचपन में बोलना तो सीख लेते हैं मगर क्या बोलना है और कितना बोलना है, यह सीखने के लिए पूरी उम्र भी कम पड़ जाती है. मौन रहना आज के दौर में ध्यान केंद्रित करने की तरह ही है.
![सरकार थोप रही मोबाइल सरकार थोप रही मोबाइल](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/871/1990019/PC285IuYk1739280195789/1739280474981.jpg)
सरकार थोप रही मोबाइल
सरकार द्वारा कई स्कीमों को चलाया जा रहा है. बिना एडवांस मोबाइल फोन और इंटरनैट सेवा की इन स्कीमों का फायदा उठाना असंभव है. ऐसा अनावश्यक जोर क्या सही है?
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सास बदली लेकिन नजरिया नहीं
सास और और बहू को एकदूसरे की भूमिका को स्वीकार करना चाहिए. सास पुरानी परंपराओं का पालन करते हुए बहू को सिखा सकती है और बहू नई सोच व नए दृष्टिकोण से घर को बेहतर बना सकती है.
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अमेरिका में भी पनप रहा ब्राह्मण व बनिया गठजोड़
डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही अमेरिका में एक नए दौर की शुरुआत हो चुकी है जिसे ले कर हर कोई आशंकित है कि अब लोकतंत्र को हाशिए पर रख धार्मिक एजेंडे पर अमल होगा.
![किस संतान को मिले संपत्ति पर ज्यादा हक किस संतान को मिले संपत्ति पर ज्यादा हक](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/871/1990019/9JDheV0BY1739279671565/1739280166756.jpg)
किस संतान को मिले संपत्ति पर ज्यादा हक
यह वह दौर हैं जब पेरैंट्स की सेवा न करने वाली संतानों की अदालतें तक खिंचाई कर रही हैं लेकिन मांबाप की दिल से सेवा करने वाली संतान के लिए जायदाद में ज्यादा हिस्सा देने पर वे भी अचकचा जाती हैं क्योंकि कानून में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है. क्या यह ज्यादती नहीं?
![युवाओं के सपनों के घर पर डाका युवाओं के सपनों के घर पर डाका](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/871/1990019/SzT5OWXW71739279379347/1739279671358.jpg)
युवाओं के सपनों के घर पर डाका
नौकरीपेशा होम लोन ले कर अपने सपनों का आशियाना खरीद लेते हैं. लेकिन यहां समस्या तब आती है जब किसी यूइत में वे लोन नहीं चुका पाते. ऐसे में कई बार उन्हें अपने घर से हाथ धोना पड़ता है.
![मेलजोल के अवसर बुफे पार्टी मेलजोल के अवसर बुफे पार्टी](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/871/1990019/kAkDNoyBV1739280807508/1739281176766.jpg)
मेलजोल के अवसर बुफे पार्टी
बूफे पार्टी में मेहमान भोजन और अच्छे समय का आनंद लेने के साथसाथ सोशल गैदरिंग के चलन को भी जीवित रखते हैं. यह अवसर न केवल खानपान के लिए होता है बल्कि यह लोगों के बीच बातचीत, हंसीमजाक और आपसी विचारों के आदानप्रदान का एक साधन भी है.
![अल्लू अर्जुन को जेल भगवान दोषमुक्त अल्लू अर्जुन को जेल भगवान दोषमुक्त](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/871/1990019/RkxmXuMNk1739280478617/1739280798357.jpg)
अल्लू अर्जुन को जेल भगवान दोषमुक्त
एक तरह के हादसे पर कानून दो तरह से कैसे काम कर सकता है? क्या यह न्याय और संविधान दोनों का अपमान नहीं ?
![ऊंचे ओहदे वालों में अकड़ क्यों ऊंचे ओहदे वालों में अकड़ क्यों](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/871/1971251/jsAA7PQtH1737712505485/1737712993859.jpg)
ऊंचे ओहदे वालों में अकड़ क्यों
कुछ लोगों में अपने रुतबे को ले कर अहंकार होता है. उन्हें लगता है कि उन का ओहदा, उन का पद बैस्ट है. वे सुपीरियर हैं. यह सोच अहंकार और ईगो लाती है जो इंसान के व्यवहार में अड़चन डालती है.
![बंटोगे तो कटोगे वाला नारा प्रधान राष्ट्र बंटोगे तो कटोगे वाला नारा प्रधान राष्ट्र](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/871/1971251/igzsVRgNl1737713300356/1737713410810.jpg)
बंटोगे तो कटोगे वाला नारा प्रधान राष्ट्र
देश नारा प्रधान है. काम भले कुछ न हो रहा हो पर पार्टियां और सरकारों द्वारा उछाले नारों की खुमारी जनता पर खूब छाई रहती है.