आज के समय में बच्चा पैदा करना, उस की परवरिश करना, उसे शिक्षित करना लगभग 25 वर्षों के लंबे समय का प्रोजैक्ट होता है, जिस में नर्सरी से ले कर 12वीं क्लास तक और उस के बाद कालेज की पढ़ाई, कोचिंग, होस्टल, जेब खर्च, वाहन, रहनसहन, होटल पार्टी, घूमना फिरना आदि शामिल होते हैं. यदि आज के समय में अनुमान लगाया जाए तो लगभग 2 करोड़ रुपए से कुछ ज्यादा ही खर्च हो सकता है.
इस के अलावा शिक्षा के लिए ऋण, यदि विदेश गए तो विदेश की शिक्षा का खर्च, वीजापासपोर्ट, आनाजाना जैसी सभी गतिविधियां भारी खर्च वाली होती हैं. पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं तो भी और चाहे वे मध्यवर्ग या उच्चमध्यवर्ग के हों, सभी को बहुत भारी पड़ता है. कम से कम एक या दो संतानें होनी जरूरी हैं, यह लगभग सभी पारिवारिक व सामाजिक लोगों का मानना है.
जो विवाहित दंपती हैं, उन्हें संतान को जन्म देने से पहले वर्तमान समय, काल, परिस्थिति के मुताबिक योजना बनाना बहुत जरूरी है, जैसे आज हम कितना कमाते हैं, आगे हम कितना कमा पाएंगे, हमारी शारीरिक व मानसिक कार्यक्षमता कैसी रहेगी.
यह अनुमान बहुत जरूरी है. जिस दिन बच्चा गर्भ में आता है, उस दिन से ही खर्चे बढ़ जाते हैं, बच्चे की मां का चिकित्सा परीक्षण, दवा आदि के खर्चे. किसी भी बहुत अच्छे अस्पताल में डिलीवरी कराना, चाहे नौर्मल हो या सिजेरियन, अस्पताल का खर्च दोतीन लाख रुपए होना सामान्य बात है. अधिकांश महिलाएं नौकरीपेशा होती हैं, इसलिए संतान होने के बाद 6 माह या उस से अधिक का नौकरी से अवकाश लेना या नौकरी छोड़ना पड़ता है. अब संयुक्त परिवार नहीं हैं कि बच्चे को दादादादी व चाचीबूआ आदि संभाल सकें.
ज्यादातर विवाहित दंपती अकेले ही रहते हैं. यदि शिशु अबोध है और शिशु की मां को नौकरी भी करनी है तो बच्चे को किसी बेबी क्रैच में छोड़ा जाए या घर पर कोई मेड रखी जाए, दोनों का ही खर्च उठाना होता है.
This story is from the December Second 2024 edition of Sarita.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the December Second 2024 edition of Sarita.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
यूट्यूबिया पकवान मांगे डाटा
कुछ नया बनाने के चक्कर में मिसेज यूट्यूब छान मारती हैं और इधर हम 'आजा वे माही तेरा रास्ता उड़ीक दियां...' गाना गाते रसोई की ओर टकटकी लगाए इंतजार में बैठे हैं कि शायद अब कुछ खाने को मिल जाए.
पेरैंटल बर्नआउट इमोशनल कंडीशन
परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्न आउट का शिकार हो रहे हैं.
एक्सरसाइज करते समय घबराहट
ऐक्सरसाइज करते समय घबराहट महसूस होना शारीरिक और मानसिक कारणों से हो सकता है. यह अकसर अत्यधिक दिल की धड़कन, सांस की कमी या शरीर की प्रतिक्रिया में असंतुलन के कारण होता है. मानसिक रूप से चिंता या ओवरथिंकिंग इसे और बढ़ा सकती है.
जब फ्रैंड अंधविश्वासी हो
अंधविश्वास और दोस्ती, क्या ये दो अलग अलग रास्ते हैं? जब दोस्त तर्क से ज्यादा टोटकों में विश्वास करने लगे तो किसी के लिए भी वह दोस्ती चुनौती बन जाती है.
संतान को जन्म सोचसमझ कर दें
क्या बच्चा पैदा कर उसे पढ़ालिखा देना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करना है? बच्चा पैदा करने और अपनी जिम्मेदारियां निभाते उसे सही भविष्य देने में मदद करने में जमीन आसमान का अंतर है.
बढ़ रहे हैं ग्रे डिवोर्स
आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.
ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और मोदी
मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है. इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवड़ियां बहुतों में बंटती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी व नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है.
विश्वगुरु कौन भारत या चीन
चीन काफी लंबे समय से तमाम विवादों से खुद को दूर रख रहा है जिन में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैरजरूरी रूप से उलझे हुए हैं. चीन के साथ अन्य देशों के सीमा विवाद, सैन्य झड़पों या कार्रवाइयों में भारी कमी आई है. वह इस तरफ अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता. इस वक्त उस का पूरा ध्यान अपने देश की आर्थिक उन्नति, जनसंख्या और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने की तरफ है.
हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.