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बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
Sarita|December Second 2024
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
- शांतिस्वरूप त्रिपाठी
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर

बौलीवुड के बहुचर्चित निर्माता व निर्देशक करण जौहर की फिल्म निर्माण कंपनी धर्मा प्रोडक्शंस लंबे समय से घाटे में चल रही थी. 2012 में फिल्म 'स्टूडेंट ऑफ द ईयर' के बाद से जौहर की प्रोडक्शन कंपनी ने जितनी फिल्में बनाईं, सभी ने काफी नुकसान पहुंचाया. 2024 की शुरुआत से ही चर्चा थी कि करण जौहर अपने पिता द्वारा 1979 में स्थापित धर्मा प्रोडक्शंस को बेचना चाहते हैं. आखिरकार अक्तूबर माह में करण जौहर ने धर्मा प्रोडक्शंस की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी पुणे के सीरम इंस्टिट्यूट के मालिक अदार पूनावाला को 1,000 करोड़ रुपए में बेच दी. तब से बौलीवुड के अंदर एक नई बहस शुरू हो गई है कि क्या फिल्म प्रोडक्शंस में कौर्पोरेट के इन्वैस्टमैंट या जुड़ाव से सिनेमा का विकास होगा या सिनेमा की बरबादी? इस तरह के सवाल उठाने वालों का यकीन है कि सिनेमा सिर्फ व्यवसाय नहीं बल्कि कला भी है.

मशहूर फिल्मकार विनोद पांडे इस संबंध में साफसाफ कहते हैं, "सिनेमा केवल नाचगाना, मनोरंजन या ऐक्शन नहीं है. फिल्मकार अपनी कहानी के जरिए कुछ न कुछ कहता है. इस बात को कौर्पोरेट नहीं समझ सकता क्योंकि कौर्पोरेट तो उत्पादक पदार्थों को बेचना व लाभ कमाना जानता है." मगर जब से करण जौहर ने अपनी कंपनी में कौर्पोरेट को हिस्सेदार बनाया है, तब से कई कर्पोरेट कंपनियां फिल्म उद्योग से जुड़ने को इच्छुक नजर आ रही हैं.

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो फरहान अख्तर और रितेश सिद्धवानी भी अपनी फिल्म प्रोडक्शन कंपनी एक्सेल इंटरटेनमैंट की हिस्सेदारी बेचने के लिए प्रयासरत हैं. तो वहीं खबर गरम है कि विद्या बालन के पति और फिल्म निर्माता सिद्धार्थ रॉय कपूर भी अपनी फिल्म प्रोडक्शंस कंपनी रौय कपूर फिल्म्स की हिस्सेदारी बेच रहे हैं. इसी के साथ बौलीवुड के कौर्पोरेटाइजेशन को ले कर भी कई तरह की बातें की जा रही हैं. तमाम क्रिएटिव व रचनात्मक लोग इस का विरोध कर रहे हैं. उन की राय में इस से रचनात्मकता पर अंकुश लग रहा है.

बौलीवुड यानी कि सिनेमा में कौर्पोरेट कंपनियों के इन्वैस्टमैंट की घटना कोई नई नहीं है. यह सिलसिला तो भारतीय सिनेमा के जनक कहे जाने वाले दादा साहेब फालके के जमाने से ही शुरू हो गया था और अब तक कई कौर्पोरेट घराने फिल्म निर्माण से जुड़ कर अपने हाथ जला कर तोबा भी कर चुके हैं. जी हां, यह कटु सत्य है.

Bu hikaye Sarita dergisinin December Second 2024 sayısından alınmıştır.

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