खबर है कि एक प्रमुख उद्योगपति की तलाकशुदा पत्नी गुजारे भत्ते के अपने अधिकार के बारे में कानूनी सलाह ले रही हैं। पत्नी पारसी हैं और पति हिंदू। उनकी शादी हिंदू विवाह अधिनियम की जगह विशेष विवाह अधिनियम यानी स्पेशल मैरिज ऐक्ट (एसएमए) के तहत हुई थी।
क्रेड-ज्यूर के सीनियर असोसिएट अंकुश सतीजा बताते हैं, ‘अलग-अलग जातियों या धर्मों के व्यक्तियों के बीच विवाह को मान्यता देने और अंतरधार्मिक विवाह, तलाक एवं अन्य मसलों को कानून के दायरे में लाने के लिए 1954 में स्पेशल मैरिज ऐक्ट बना।’
कुछ धर्म अपने कानून के तहत विवाह को तभी मान्यता देते हैं अगर धर्मांतरण किया गया हो। दिल्ली उच्च न्यायालय की वकील एकता राय कहती हैं, ‘कई लोग इसके लिए तैयार नहीं होते। यह मौलिक अधिकारों के भी खिलाफ है। इसलिए ऐसा कानून बनाने की जरूरत पड़ी जो लोगों को धर्म परिवर्तन किए बगैर विवाह करने दे।’ हिंदू विवाह अधिनियम उन लोगों की वैवाहिक प्रथाओं पर लागू होता है, जो हिंदू धर्म से ताल्लुक रखते हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय के वकील शशांक अग्रवाल बताते हैं, ‘स्पेशल मैरिज ऐक्ट में धार्मिक समारोह की कोई जरूरत नहीं होती। मगर हिंदू विवाह अधिनियम के तहत हिंदू धर्म के अनुष्ठान अथवा पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन करना ही होता है। अगर सप्तपदी यानी सात फेरे लिए जाते हैं तो सातवां फेरा लेने के बाद ही माना जाता है कि विवाह पूरा हुआ और दोनों में पति-पत्नी का संबंध हो गया।’
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'तत्काल सुनवाई के लिए मौखिक उल्लेख नहीं, ईमेल या पत्र भेजा जाए'
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5 महीने के निचले स्तर के करीब निफ्टी
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