आप पेरिस में भारत के ओलिंपिक अभियान का चेहरा रहीं। मीडिया के इतने आकर्षण और इतने ब्रांड सौदों के साथ क्या अब आपको उम्मीदों का बोझ जैसा लग रहा है?
उम्मीदें हमेशा मेरी यात्रा का हिस्सा रही हैं। यह सिलसिला साल 2018 के राष्ट्रमंडल खेलों में मिली जीत के बाद से जारी है। मैं अब यह दबाव झेलने की आदी हो गई हूं, लेकिन अब यह अलग स्तर पर पहुंच गया है। मैं इससे भी निपटना सीख रही हूं।
क्या आपको दो-दो ओलिंपिक पदक जीतने का यकीन हो रहा है?
10 मीटर प्रारूप में मेरी अपनी समस्याएं थीं। मैं साल 2022 और 2023 में काफी अच्छी स्थिति में नहीं थीं मगर जसपाल (राणा) सर ने कहा कि मैं यह कर सकती हूं। हम शूटिंग हॉल में बैठे थे और मैं लगातार सब कुछ देख रही थी और खुद को मानसिक रूप से तैयार कर रही थी। अगर जसपाल सर नहीं होते तो मैं भी वहां नहीं होती, जहां आज हूं। मेरा परिवार और दोस्त भी मुझे प्रेरित करने के लिए वहां मौजूद थे। दोनों पदक एक समान जरूरी थे, लेकिन मिश्रित युगल के लिए हम केवल कांस्य के लिए योग्य थे मगर हमने जीत लिया।
पेरिस ओलिंपिक से पहले आपका फॉर्म उतार-चढ़ाव भरा रहा। आपने खुद को कैसा प्रेरित किया?
पिछले साल की शुरुआत में मैं खेल छोड़ने के बारे में सोच रही थी। फिर भी मैंने कम से कम 2024 के ओलिंपिक तक खुद को आगे बढ़ाने की कोशिश की। मैंने अपनी दिनचर्या को बरकरार रखने की कोशिश, लेकिन मैं अच्छी स्थिति में नहीं थी।
This story is from the September 03, 2024 edition of Business Standard - Hindi.
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