एक दिवालिया और दूसरी विलय दोनों घटनाएं दर्शाती हैं कि अप्रैल 1990 में सरकार द्वारा घोषित ‘खुली आकाश नीति’ के बाद से ही भारतीय विमानन उद्योग का सफर कितना उतार-चढ़ाव भरा रहा है। इन साढ़े तीन दशकों के दौरान भारत में लगभग 45 एयरलाइंस शुरू होकर बंद हो गईं। इनमें अधिकांश ऐसी रहीं, जिन्होंने पूरी तरह अपना संचालन रोक दिया तो कुछ ने दूसरी विमानन इकाइयों में विलय, अधिग्रहण अथवा आंतरिक पुनर्निर्माण करके अपनी पहचान को नया रूप दिया।
यह शाश्वत सत्य है कि विमानन क्षेत्र दुनिया के सबसे अधिक अनिश्चितता वाले उद्योगों में से एक है और यह युद्ध, ईंधन कीमतों में उतार-चढ़ाव, ज्वालामुखी विस्फोट जैसी अचानक घटित होने वाली तमाम घटनाओं से प्रभावित होता है। विमान टर्बाइन ईंधन, विमान पट्टे और पायलट प्रशिक्षण जैसी उच्च लागत वाली संरचना के साथ-साथ अनिश्चित नियामकीय प्रणाली के मद्देनजर भारतीय विमानन विश्व के सबसे जोखिम वाले क्षेत्रों में गिना जाता है। इसके बावजूद मोटी पूंजी के निवेश वाला यह उद्योग भारतीय कारोबारी जगत को खूब आकर्षित करता है। नाकाम होने के डर से निवेशक इस क्षेत्र में कदम रखने से बिल्कुल
नहीं घबराते।
वर्ष 1991 के बाद से ही एयरलाइंस कारोबार ने मछली पकड़ने वाले जहाज के मालिक से लेकर चिटफंड के प्रवर्तक, टिकट एजेंट, शराब व्यापारी, राजनेता, उडुपी रेस्टोरेंट संचालक और शेयर मार्केट के जाने-माने खिलाड़ी के साथ-साथ देश के सबसे बड़े कारोबारी समूह के अध्यक्ष तक को पैसा लगाने के लिए लुभाया है। गोएयर, मोदीलुफ्ट, दमानिया, किंगफिशर जैसी कई विमानन कंपनियां कुछ समय तक आकाश में उपस्थिति दर्ज कराने के बाद इतिहास में गुम हो गईं।
खास बात यह कि उद्योग जगत के कुछ ऐसे भी दिग्गज रहे, जिन्होंने विमानन क्षेत्र में नाम कमाया। इस सूची में पहला नाम आता है उदारीकरण के बाद 1994 में अस्तित्व में आई पहली निजी एयरलाइंस ईस्ट-वेस्ट एयरलाइंस का, जिसके मालिक केरल के कारोबारी ताकियुद्दीन अब्दुल वाहिद थे। एयरलाइंस का संचालन शुरू होने के एक साल बाद ही गैंगस्टरों ने वाहिद की गोली मार कर हत्या कर दी थी।
This story is from the November 19, 2024 edition of Business Standard - Hindi.
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