बड़ी कंपनियों के आला अधिकारियों के दफ्तर हों या पढ़े-लिखे तबके के ड्रॉइंग रूम... वहाँ भी इन्हें बहस-मुबाहिसों में भरपूर जगह मिल रही है।
जलवायु परिवर्तन की बात को सिरे से नकारने वालों को छोड़ दें तो हर कोई मानता है कि ग्लोबल वार्मिंग देश और दुनिया में आम जीवन तथा अर्थव्यवस्था के लिए बहुत बड़ा खतरा है। हालाँकि बाकी सभी आपदाओं की तरह ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से कई कारोबारी मौके भी मिलते हैं, फिर भी ज़्यादातर लोग मानेंगे कि जलवायु परिवर्तन से आ रहे कारोबारी मौके उससे मानवता को होने वाले खतरे की तुलना में कुछ भी नहीं हैं।
इस बीच एआई के क्षेत्र में हाल में हुई घटनाओं से मिली-जुली भावनाएँ जन्म ले रही हैं। जो लोग इसे ठीक तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं, उन्हें उद्योगों में क्रांति लाने तथा अर्थव्यवस्था को तेज रफ्तार देने की इसकी क्षमता ललचा रही होगी। मगर इसके खतरे भी साफ़ नज़र आ रहे हैं - एआई के कारण नौकरियाँ जाना तय है और इससे बन रहे डीपफेक के कारण ज़िंदगियाँ तबाह हो रही हैं, चुनावों पर असर डाला जा रहा है और आफ़त आ रही है।
ग्लोबल वार्मिंग और एआई पर एक साथ चर्चा शायद ही कहीं सुनने को मिले, बल्कि दोनों को एक साथ जोड़कर भी नहीं देखा जाता। यह बड़ी भूल है क्योंकि इन दोनों एक-दूसरे के बेहद करीब हैं। ग्लोबल वार्मिंग का इतिहास खंगालने पर पता चलता है कि कार्बन उत्सर्जन की शुरुआत बेशक तब हुई, जब मनुष्य ने आग की खोज की, मगर आज हम जिस दारुण स्थिति में हैं, उसकी वजह प्रौद्योगिकी में हुए विकास हैं। भाप का इंजन हो या ताप बिजली या हाइड्रोकार्बन क्रांति और सूचना प्रौद्योगिकी का उद्भव-हर औद्योगिक क्रांति के साथ उत्सर्जन की मात्रा कई गुना बढ़ती गई।
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