हाल फिलहाल के अतीत में तो याद नहीं आता कि नए साल की देहरी पर खड़ी दुनिया का भाग्य किसी एक व्यक्ति पर इतना निर्भर रहा हो, जितना आज है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसा लगा है मानो तमाम देशों के प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक फैसले अगली जनवरी तक के लिए रोक दिए गए हैं, जब डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका का राष्ट्रपति पद संभालेंगे।
अमेरिका निस्संदेह दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है। इसके राष्ट्रपति के कदमों का असर बाकी दुनिया पर पड़ना ही है। लेकिन ट्रंप अमेरिका के बाकी राष्ट्रपतियों की तरह नहीं हैं। विदेश और आर्थिक नीति के मामले में वह सबसे अलग लीक पर चलते हैं, जो अमेरिका के साथ बाकी दुनिया में भी उथलपुथल मचा सकती है। यही वजह है कि दुनिया दम थामे उन्हें देख रही है। भूराजनीति के क्षेत्र में विश्व पश्चिम एशिया और यूक्रेन पर ट्रंप के कदमों की प्रतीक्षा कर रहा है। ट्रंप ने अमेरिका में आने वाले आयात पर अधिक शुल्क लगाने और अवैध आव्रजन पर सख्ती बरतने के दो प्रमुख वादे किए थे। आर्थिक नीति निर्माता दोनों वादों पर ट्रंप की कार्रवाई देखने और झेलने के लिए तैयार हो रहे हैं।
पश्चिम में मुख्यधारा के मीडिया में ट्रंप को खलनायक बनाने की फितरत इतनी ज्यादा है कि उन्हें उस संकल्प का श्रेय भी नहीं दिया जा रहा, जिससे शायद ही कोई असहमति रखता हो। मार्च 2023 में ट्रंप ने अपने भाषण में एक बड़ी बात कही थी: दुनिया कम लड़ाइयों के साथ भी चल सकती है। उन्होंने कहा था, 'हमें अमन चाहिए। साथ ही उस नियो-कंजर्वेटिव व्यवस्था को भी पूरी तरह खत्म करने का संकल्प लेना चाहिए, जो विदेश में आजादी और लोकतंत्र की लड़ाई की आड़ में हमें अनंत युद्धों की आग में झोंक रही है मगर असल में वह हमें तीसरी दुनिया का (बेहद गरीब) देश बना रही है और तीसरी दुनिया में चल रही तानाशाही हमारे देश में भी ला रही है। विदेश मंत्रालय, रक्षा अफसरशाही, खुफिया सेवाओं और बाकी सब को पूरी तरह बदलने और नए सिरे से गढ़ने की जरूरत है ताकि सत्ता में काम कर रहे ऐसे बाहरी लोग (डीप स्टेट) खत्म हों और अमेरिका फर्स्ट का झंडा बुलंद हो।'
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