मनमोहन सिंह ने बदली भारत की तकदीर
Business Standard - Hindi|January 01, 2025
आज का भारत अपनी तमाम सफलताओं और कमियों के साथ हालिया इतिहास के किसी अन्य व्यक्ति के बजाय मनमोहन सिंह की देन है। उन्हें हमेशा "असंभावित" राजनेता कहा गया लेकिन अपनी तमाम कामयाबियों और नाकामियों के साथ उनका करियर हमें यह याद दिलाता है कि टेक्नोक्रेट भी किसी राजनेता की तरह ही देशों की तकदीर बदल सकते हैं।
मिहिर शर्मा
मनमोहन सिंह ने बदली भारत की तकदीर

तटस्थ होकर बात करें तो अगर सिंह एक असंभावित राजनेता थे तो लोगों को यह सोचने के लिए माफ किया जा सकता है कि वह कहीं अधिक असंभावित उदारवादी थे। उन्होंने अपना पूरा करियर एक ऐसे अर्थशास्त्री और अफसरशाह के रूप में बिताया था जिसने उस समाजवादी व्यवस्था की सेवा में अपना समय दिया था जो 1991 के पहले देश की आधिकारिक आर्थिक विचारधारा थी। जब वह करीब 60 वर्ष के हुए तब राजनीति में उन्होंने अपने करियर की दूसरी पारी शुरू की और सुधारों की प्रक्रिया से जुड़े।

सिंह ने जुलाई 1991 के अपने प्रसिद्ध भाषण के समापन में विक्टर ह्यूगो के कथन को नए सलीके से इस्तेमाल करते हुए कहा था, 'एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत का उभार एक ऐसा विचार था जिसका वक्त आ गया है।' इसके आठ महीने बाद उन्होंने सुधारों के बचाव में जो भाषण दिया था वह भी बहुत प्रेरक है। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि, 'उनसे यह दृष्टि मिली कि भारत में सामाजिक और आर्थिक बदलाव एक खुले समाज के ढांचे में होने थे जो संसदीय लोकतंत्र और विधि के शासन के प्रति प्रतिबद्ध हों।' उन्होंने यह भी कहा कि सुधार 'उस रचनात्मकता, आदर्श, रोमांच और उद्यमिता को सामने लाएंगे जो हमारे देश के लोगों के पास प्रचुर मात्रा में है।' उनका यह भाषण बिस्मिल के क्रांतिकारी शेर के साथ खत्म हुआ, 'सरफरोशी की तमन्ना...' परंतु इस शेर से पहले उन्होंने जो कहा वह बताता है कि उस वक्त सुधारक क्या महसूस करते थे, 'आज रात मुझे लग रहा है कि मैं थिएटर जाऊँ। हत्यारों को खबर हो जाए कि मैं उनका सामना करने के लिए तैयार हूँ।' हत्यारों के रूपक का प्रयोग हमें बताता है कि सुधार के शुरुआती दौर में सिंह किन हालात में काम कर रहे थे।

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