कुम्हारी हादसे के बाद खदानों के दोहन और सुरक्षा को लेकर सवालिया निशान लग गए हैं। खासकर, मुरूम की खुदाई राज्यभर में कई इलाकों में हो रही है और हो भी चुकी है, लेकिन सुरक्षा शून्य है। मुरुम निकालने के बाद खदानों को खाली छोड़ दिया गया है। उसकी सुरक्षा के लिए न बाउंड्रीवाल है और न ही जानलेवा गड्डों को पाटा गया है। गिट्टी खदानों का भी यही हाल है।
रायपुर जिले की ही बात करें तो यहां मुरुम खदानों में उत्खनन का काम बेलगाम हो चुका है। मुरुम खदानों में जहां अवैध रूप से उत्खनन का काम धड़ल्ले से जारी है, वहीं दूसरी ओर मुरुम की खुदाई के लिए कई नियम भी बने हुए हैं। इन नियमों का भी पालन नहीं किया जा रहा है। मुरुम खुदाई की अनुमति जमीन का दायरा, कितने फीट तक खुदाई होनी है उसकी सीमा, खोदाई के दौरान मुरुम खदान में लगे वाहन और लोगों के उतरने के लिए रास्ता बनाना, संकेत बोर्ड लगाना, बिजली की व्यवस्था, खदानों के अंदर वाहन के आने-जाने वाले मुख्य मार्ग को छोड़कर ऊपरी हिस्से की अन्य सभी दिशाओं को बाउंड्रीवाल या अन्य सुरक्षा के उपाय करना नियमों में शामिल है, लेकिन खदानों में इनमें से एक नियम का भी पालन नहीं किया जा रहा है। यही कारण है कि दो दिन पहले छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के कुम्हारी के पास श्रमिकों से भरी एक बस के मुरुम खदान में गिरने से बड़ी दुर्घटना हो गई, जिसमें कई लोगों की जान चली गई।
जमीन का मालिक व ठेकेदार जिम्मेदार: मुरुम खनन के लिए सरकारी जमीन हो या निजी जमीन, कोई भी अनुमति के लिए आवेदन कर सकता है। विभाग से अनुमति रायल्टी जमा करने के बाद किया जा सकता है। सूत्रों के अनुसार सरकारी जमीन वाली मुरुम खदान पर अगर कोई हादसा होता है, तो इसके लिए संबंधित विभाग के अधिकारी से लेकर ठेकेदार जिम्मेदार होते हैं, वहीं बिजी जमीन के मुरुम खदान में हादसा होता है, तो इसकी जिम्मेदारी जमीन के मालिक और ठेकेदार की होती है, क्योंकि नियमों के तहत सुरक्षा व्यवस्था की सारी जिम्मेदारी उनकी होती है।
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