धारा 498A के तहत दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाते समय अक्सर पति के साथ उसके सभी परिवार के सदस्यों को भी शामिल कर लिया जाता है, भले ही उनका प्रताड़ना से कोई संबंध न हो। एक रिपोर्ट के मुताबिक, इन मामलों में करीब 70% से ज्यादा नामजद आरोपी वे होते हैं, जिनका प्रताड़ना से सीधा संबंध नहीं होता। इसके चलते कई निर्दोष लोग कानूनी लड़ाई और मानसिक प्रताड़ना का सामना करने को मजबूर होते हैं। कई मामलों में पुलिस विवेचक कथित रूप से नाम हटाने के बदले मोटी रकम की मांग करते हैं, जिसके कारण पीड़ित परिवारों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने इस मुद्दे पर गंभीर चिंता जताते हुए सभी निचली अदालतों को दहेज उत्पीड़न के मामलों में सतर्कता बरतने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा कि अक्सर इन मामलों में आरोप बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए जाते हैं, जिससे निर्दोष लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि विवेचना अधिकारी केवल मुख्य आरोपी के खिलाफही पर्याप्त सबूत मिलने पर कार्रवाई करें, ताकि निर्दोषों को अनावश्यक रूप से परेशान न होना पड़े।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022 में देशभर में 1,25,000 से अधिक दहेज उत्पीड़न के मामले दर्ज किए गए, जिनमें से करीब 50,000 मामलों में आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी किया गया। NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, 498A के तहत दर्ज मामलों में से 85% तक मामलों में अदालतों ने पाया कि ये मामले झूठे या बदले की भावना से दर्ज किए गए थे।
दहेज उत्पीड़न कानून का उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करना है, लेकिन इसके बढ़ते दुरुपयोग से समाज में फूट और भरोसे की कमी भी उत्पन्न हो रही है। अदालतें और विधि विशेषज्ञ इस पर पुनर्विचार करने की बात कर रहे हैं, ताकि कानून का वास्तविक उद्देश्य पूरा हो सके और निर्दोष लोग कानूनी दुरुपयोग से सुरक्षित रहें।
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