दास मानसिकता का परित्याग
Panchjanya|September 25, 2022
स्वतंत्रता के अमृत वर्ष में भारत दासता के चिह्नों से स्वतंत्र होकर भारतीय प्रतीकों को अपनाने की दिशा में बढ़ रहा है। ये मात्र प्रतीक नहीं हैं अपितु एक मानसिकता के भी द्योतक हैं। नए प्रतीक बताते हैं कि भारत दासता की मानसिकता से मुक्ति की राह पर है
प्रमोद जोशी
दास मानसिकता का परित्याग

लुटियन्स जोन अंग्रेज बादशाहत की पालकी ढोने वालों की विरासत है। उसे हम गिरा नहीं सकते, पर संवार-सुधार सकते हैं। ढाई किमी लंबा 'कर्तव्य पथ' बदले हुए भारत का प्रतीक मात्र है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हम गुजरे हुए कल को छोड़कर, आने वाले कल की तस्वीर में नए रंग भर रहे हैं। भारत वह देश नहीं, जो अपने गौरवमय इतिहास को भुला दे। 9 सितंबर से सेंट्रल विस्टा एवेन्यू आम जनता के लिए खोल दिया गया है। वहां जाने वाली भीड़ के चेहरों से आप अनुमान लगा सकते हैं कि वे कैसा महसूस कर रहे हैं।

राजनीतिक विरोध

ऐसे कार्यक्रमों पर राष्ट्रीय सवार्नुमति हो, तो अच्छा है। अफसोस कि राजनीतिक अंध-विरोध ने इसे भी नहीं छोड़ा। जब से इस परियोजना की घोषणा हुई, इसे किसी न किसी वजह से विवाद का विषय बनाने की कोशिशें भी हुई। यहां तक कि निर्माण रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय तक भी लोग गए। दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका को अदालत ने एक लाख रुपये के जुर्माने के साथ खारिज किया।

नए संसद भवन की छत पर लगे अशोक स्तंभ के शेरों को क्रूर और आक्रामक बताकर खारिज किया गया। इस किस्म की समझ का प्रदर्शन देश की आंतरिक राजनीति में ही नहीं हुआ, न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित लेख में भी हुआ। प्रधानमंत्री ने 11 जुलाई को इस अशोक स्तंभ का अनावरण किया था। आलोचकों ने शेरों के दांत तक गिन लिए। सरकारें आती-जाती रहेंगी, पर ऐसे राष्ट्रीय स्मारक हमेशा नहीं बनते।

जीर्णोद्धार परियोजना

सेंट्रल विस्टा जीर्णोद्धार परियोजना के अंतर्गत केवल नए संसद भवन का निर्माण या कर्तव्य पथ का पुनर्निर्माण ही नहीं, कई तरह के दूसरे कार्य शामिल हैं। ये सभी इमारतें 1931 से पहले ब्रिटिश राज में बनीं थीं। इन्हें एडविन लुटियन्स और हरबर्ट बेकर ने डिजाइन किया था। लगभग एक सदी के बाद इन पुरानी इमारतों की मरम्मत और इनमें सुधार की जरूरत है। उन्हें नए भारत के प्रतीक के रूप में विकसित करने की जरूरत भी है। पुराने संसद भवन के पुनरुद्धार में समय लगेगा।

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