• दो दशक पहले जब देश ने सुशासन का पहली बार साक्षात्कार करना शुरू किया, आप युवा पीढ़ी में से नीतिनियंताओं के करीब, थिंक टैंक्स के निकट रहकर यह सब देख रहे थे। नीति निर्माताओं के साथ आपका पहला अनुभव कैसा रहा और कैसे शुरू हुआ ?
मुझे खूब याद है, 1999 में पहली बार दिल्ली आने के बाद मैंने सरकार के अलग-अलग नीतिगत विषयों, सरकार और नीति निर्धारण के साथ जुड़ना शुरू किया और वही समय था जब भारत में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार का दौर शुरू हुआ। यह वही समय था जब भारत ने पूरी दुनिया में आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाना शुरू किया था। भारत के इतिहास में 1990 के दशक के बाद प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव जी और तत्कालीन वित्त के मंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह को सब लोग आर्थिक सुधारों का श्रेय देते हैं। निश्चित रूप से उन्होंने उसकी शुरुआत की। लेकिन मुझे लगता है, अगर भारत को सही मायने में एक आर्थिक स्तंभ के रूप में किसी ने रखा तो माननीय अटल बिहारी वाजपेयी ने 1991 में जो आर्थिक सुधार आए, वे कई मायने में मजबूरन आए। हमारी शुरुआत मजबूरी के कारण हुई। लेकिन उसके बाद जब देश की अर्थव्यवस्था को अलग स्तर पर ले जाने की आवश्यकता हुई, तब देश को अटल बिहारी वाजपेयी जैसे विजनरी प्रधानमंत्री प्राप्त हुए। ऐसी कई छोटी-छोटी घटनाएं हैं जिनके कारण इस देश में नीति निर्धारण में बदलाव आया। जैसे राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम को देश के आर्थिक विकास में अटल जी का सबसे बड़ा योगदान माना जाता है। यह स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा कार्यक्रम था। 1947 के बाद पूंजीगत निवेश का, आर्थिक प्रेरणा देने के लिए बुनियादी ढांचे को प्रेरित करने के उद्देश्य से इतना बड़ा कार्यक्रम आज तक कभी नहीं हुआ था।
यह केवल किसी बड़े कार्यक्रम की घोषणा की बात नहीं थी बल्कि हमारे देश के नीति-निर्धारण में एक बडा टैक्टिकल शिफ्ट था। क्योंकि तब तक हमारे यहां जरूरत के हिसाब से काम होते थे कि आज कहीं सड़क, रेल लाइन, स्टेडियम की जरूरत है तो बना दो। लेकिन एक व्यावहारिक दृष्टिकोण पहली बार अटल जी के नेतृत्व में भारत सरकार में अपनाया गया जो नीति निर्धारण में एक बहुत बड़ा बदलाव था और जिसके कारण आज 25 साल बाद भी उसका असर हमें दिखता है। मुझे लगता है उनका बहुत बड़ा असर है नीति-निर्धारण में।
This story is from the January 08, 2023 edition of Panchjanya.
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