'बहुत उज्ज्वल है हिंदी का भविष्य'
Panchjanya|January 08, 2023
'सागर मंथन' के सुशासन संवाद में एक सत्र हिंदी और स्व. अटल बिहारी वाजपेयी पर केंद्रित था। वरिष्ठ पत्रकार अनुराग पुनेठा के संचालन में हुए इस सत्र में वाणी प्रकाशन की कार्यकारी निदेशक अदिति माहेश्वरी ने हिंदी के उज्ज्वल भविष्य पर अपने विचार व्यक्त किए, जिसके संपादित अंश इस प्रकार हैं
'बहुत उज्ज्वल है हिंदी का भविष्य'

आज बड़े प्रकाशन जो पत्रिकाएं छाप रहे हैं, उनमें और 'पाञ्चजन्य' में कोई तुलना ही नहीं है। 'पाञ्चजन्य' की पत्रकारिता बेबाक है। आज भारत की कौन-सी पत्रिका है, जो एमेजॉन पर सवाल खड़े कर सकती है? कुनीतियों और कुरीतियों को 'पाञ्चजन्य' ही रेखांकित कर सकती है।

इसी पत्रिका में रामधारी सिंह दिनकर का साक्षात्कार प्रकाशित हुआ, जिसमें वह कहते हैं, "धन को मैं धूल समझता हूं, जीवन का मूल समझता मैं। अब याचना नहीं, रण होगा।" 1947 में अटल बिहारी वाजपेयी कहते हैं, "उल्लास कैसे मनाऊं, अभी तो आजादी अधूरी है।" विचार की दृष्टि से दिनकर जी और पाञ्चजन्य के तत्कालीन संपादक स्व. अटल बिहारी वाजपेयी भले ही भिन्न हों, लेकिन 'पाञ्चजन्य' में सबके लिए स्थान था और आज भी है। देश को जानने-समझने का यह उदार तरीका कहीं और देखने को नहीं मिलता है।

केरल में जब कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी थी, तब अटल जी ने अपने भाषण में कहा था कि कम्युनिस्ट पार्टी के पास यह साबित करने का बहुत अच्छा मौका है कि वे लोकतांत्रिक तरीके से सरकार चला सकते हैं। जो यह उनके डीएनए के खिलाफ है। उन्होंने बहुत बड़ी बात कही थी। अटल जी सीधा और साफ बोलते थे।

1985-88 के बाद साहित्य की मांग भी बहुत थी और इस क्षेत्र में शोध भी होने लगे थे। लेकिन 1990 के दशक में हिंदी साहित्य का स्तर काफी गिर गया। एक ही ढर्रे पर किताबें लिखी जा रही थीं। लेकिन सोशल मीडिया के आने के बाद यह फायदा हुआ है कि आज अपनी बात रखने के लिए सभी के पास अपना मंच है। कोई किसी का मोहताज नहीं है। इससे 'मठाधीशी' टूटी है। यह बहुत सुकून वाला समय है, क्योंकि अगर आप कुछ प्रतिपादित कर रहे हैं, कोई विचार रख रहे हैं तो आपके समर्थक भी हैं, आपके खिलाफ खड़े होने वाले लोग भी हैं। इस समय अनेक युवा लेखक हमारे साथ जुड़ रहे हैं तो कई ऐसे हैं जो पौराणिक ग्रंथों को पढ़कर दोबारा उस पर काम कर रहे हैं। अतीत में जो चीजें दबा दी गईं या विलुप्त हो गईं, उनका प्रतिपादन कर रहे हैं, उनको फिर से सामने ला रहे हैं। यह सोशल मीडिया के युग में संभव हो पाया। यह वो मंच है, जिसने सबको लेखक बना दिया है।

This story is from the January 08, 2023 edition of Panchjanya.

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