काशी और तमिलनाडु का नेह बंधन
Panchjanya|January 22, 2023
वाराणसी में ‘काशी-तमिल संगमम्' का अनूठा कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस संगमम् ने भारतवासियों को यह स्पष्ट संदेश दिया कि उत्तर से लेकर दक्षिण तक भारत सदियों से सांस्कृतिक रूप से एक है
जे. पी. पाण्डेय
काशी और तमिलनाडु का नेह बंधन

जब भी किसी भारतीय को इतिहास की पुस्तक में गांधार से से लेकर मगध, चंद्रकेतुगढ़, अवंती, धन्यकटक, चोल, पांडव और चेर का मानचित्र देखने को मिलता है, वह भारतीयता के एक अलग आनंद में डूब जाता है। आज से 2000 वर्ष से अधिक समय पूर्व से यह देश राजनीतिक एकता के सूत्र में बंधा था। एक अखंड भारत की परिधि के भीतर बनते-बिगड़ते राजवंश और राज्य भारत की एकरूपता को रूपायित करते हैं।

हमारी सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का कालखंड तो उससे भी हजारों साल पुराना है। इस एकता के दो किनारों पर विद्यमान काशी और तमिलनाडु भारतीयता के दो सारस्वत वाचक हैं। एक तरफ परम पावनी मां-गंगा के तट से आती मधुर स्वर लहरी और दूसरी ओर मां-कावेरी के प्रवाह का कलकल गान, एक तरफ काशी विश्वनाथ मंदिर के हर-हर महादेव जयघोष के साथ घंटों का नाद और उधर रामेश्वर धाम में ॐ नमो शिवाय के साथ घंटों का घन-घन निनाद काशी-तमिलनाडु के जन, जमीन, आस्था और संस्कृति सम्मिलन का उद्घोष प्रतीत होता है। 

काशी में 17 नवंबर से 16 दिसंबर, 2022 तक आयोजित काशी तमिल संगमम् उदात्त अनुभव की एक नई शुरुआत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने उद्घाटन भाषण में इसे भारत की वैविध्यपूर्ण संस्कृति का उत्सव कहा। काशी-तमिल संगमम् में काशीवासियों और तमिलनाडु के आगंतुकों के बीच मिलन, समृद्ध तमिल भाषा, संस्कृति, कला, व्यंजनों का प्रदर्शन, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, वास्तुकला, व्यापार, शिक्षा, दर्शन, कला, नृत्य, संगीत सहित संस्कृति के विविध रूपों के दर्शन हुए। साथ ही कला, खेल, साहित्य और फिल्म आदि आयोजनों से संगमम् ने तमिलनाडु-काशी बंधन को सुदृढ़ करने का कार्य किया।

This story is from the January 22, 2023 edition of Panchjanya.

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