या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
यह समस्त संसार शक्तिमय है। नास्तिक से नास्तिक व्यक्ति को भी अन्ततोगत्वा यह स्वीकार करना पड़ता है कि इस संसार में ऐसी कोई अदृश्य शक्ति अवश्य है, जिसके कारण यह ब्रह्माण्ड निश्चित नियमों से बँधकर अपने यात्राक्रम को आगे बढ़ा रहा है। भले ही वह नास्तिक व्यक्ति उस अदृश्य शक्ति को ईश्वर नहीं मानकर प्रकृति का नाम दे। वह शक्ति ही इस संसार को जन्म देती है एवं उसका पालन करती है। इस कार्य संचालन के लिए हमारे यहाँ तीन देवताओं की कल्पना की गई है, जिनमें प्रथम, ब्रह्मा हैं, जो सृष्टि को जन्म देते हैं, द्वितीय विष्णु जो कि सृष्टि का पालन करते हैं और तृतीय रुद्र अर्थात् शिव जो कि सृष्टि का संहार करते हैं।
तीनों ही देवताओं के साथ अपनी-अपनी शक्ति जुड़ी हुई है। उनके नाम अलग-अलग हैं। ब्रह्मा के साथ महासरस्वती, विष्णु के साथ महालक्ष्मी और रुद्र के साथ महाकाली। मूल रूप से इन तीनों शक्तियों का रूप एक ही है। वह है, शक्ति की प्रतीक देवी 'दुर्गा'। वैदिक साहित्य में 'शक्ति सृजति ब्रह्माण्डम्' कहकर जिसकी ओर इंगित किया गया है वह ‘देवी दुर्गा' ही हैं। ऋग्वेद में देवी अपना परिचय इन शब्दों में देती हैं, 'मैं स्वयं समग्र जगत् की ईश्वरी हूँ। उपास्य तत्त्वों में, 'मैं ही श्रेष्ठ हूँ। मैं ही एकमात्र उपास्य हूँ। मैं ही सम्पूर्ण जगत् में हूँ। मुझे तुम सर्वरूप में देख रहे हो, परन्तु पहचान नहीं पा रहे हो।'
‘देवीभागवत्’ (7/7) पुराण में उनके विराट् स्वरूप का वर्णन इन शब्दों में किया गया है उनके विराट् स्वरूप के प्रदर्शन के समय आकाश उनका मस्तक, विश्व उनका हृदय, पृथ्वी जंघा, वेद वाणी और वायु प्राण थे। चन्द्रमा और सूर्य उनके नेत्र थे, दिशाएँ कान थीं, पाताल नाभि, ज्योतिष चक्र वक्षस्थल, जनलोक मुख तथा पलकें दिन-रात थीं। यह स्वरूप उस शक्ति के अतिरिक्त और किसी का नहीं हो सकता, जो अदृश्य रूप में इस विश्व के कण-कण में व्याप्त है।
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भाग्यचक्र बिगाड़ता चला गया सारे जीवन का क्रम
आलेख के आरम्भ में हम ज्ञान, विद्या और कर्म के आकलन पर विचार कर लेते हैं। जब मनुष्य आयु में बड़ा होने लगता है, जब वह बूढ़ा अर्थात् बुजुर्ग हो जाता है, क्या तब वह ज्ञानी हो जाता है? क्या बड़ी डिग्रियाँ लेकर ज्ञानी हुआ जा सकता है? मैं ज्ञानवृद्ध होने की बात कर रहा हूँ। यानी तन से वृद्ध नहीं, जो ज्ञान से वृद्ध हो, उसकी बात कर रहा है।
मकर संक्रान्ति एक लोकोत्सव
सूर्य के उत्तरायण में आने से खरमास समाप्त हो जाता है और शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति का पर्व भारतीय संस्कृति का ऊर्जा प्रदायक धार्मिक पर्व है।
महाकुम्भ प्रयागराज
[13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक]
रथारूढ़ सूर्य मूर्ति फलक
राजपूताना के कई राजवंश एवं शासक सूर्यभक्त थे और उन्होंने कई देवालयों का निर्माण भी करवाया। इन्हीं के शासनकाल में निर्मित मूर्तियाँ वर्तमान में भी राजस्थान के कई संग्रहालयों में संरक्षित हैं।
अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरि सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।
सूर्य और उनका रत्न माणिक्य
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
नागाओं का अचानक यूँ चले जाना!
नागा साधु किसी समय समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ही जीते थे, अपने लिए कतई नहीं। महाकुम्भ पर्व के अवसर पर नागा साधुओं को न किसी ने आते हुए देखा और न ही जाते हुए।
नागा साधुओं के श्रृंगार हैं अद्भुत
नागाओं की एक अलग ही रहस्यमय दुनिया होती है। चाहे नागा बनने की प्रक्रिया हो अथवा उनका रहन-सहन, सब-कुछ रहस्यमय होता है। नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती।
इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति। ये वे तन्वं विसृजति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।
कैसा रहेगा भारतीय गणतन्त्र के लिए 76वाँ वर्ष?
26 जनवरी, 2025 को भारतीय गणतन्त्र 75 वर्ष पूर्ण कर 76वें वर्ष में प्रवेश करेगा। यह 75वाँ वर्ष भारतीय गणतन्त्र के लिए कैसा रहेगा? आइए ज्योतिषीय आधार पर इसकी चर्चा करते हैं।