
यदि निष्काम भक्ति का प्रतीक कोई भाव है, तो वह है 'वात्सल्य भाव'। इसमें स्वार्थ की कहीं कोई गन्ध नहीं। हालाँकि यही समस्त भक्ति में श्रेष्ठ भाव कहलाता है। यह एक ऐसा भाव है, जो प्राणी मात्र में पाया जाता है। यही भक्ति का सर्वशुद्ध भाव है, जिसमें न तो विरक्ति की भावना है तथा न इन्द्रिय सुख की लालसा लोक धर्म का उल्लंघन भी इसमें नहीं होता।
सूरदास जी के काव्य में वात्सल्य के आश्रय बालकृष्ण हैं। कृष्ण भक्त कवियों में सूरदास जी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म सन् 1478 ई. में हुआ था। इन्होंने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का बड़ा ही मनोरम वर्णन किया है। ये वल्लभाचार्य के शिष्य थे। 'सूरसागर' नामक ग्रन्थ में इनके पद संकलित हैं। इनकी अन्य रचनाएं हैं : 'सूर सारावली' तथा "साहित्य लहरी"। इनका निधन सन् 1584 में हुआ।
सूर का बाल वर्णन भारतीय वाक्य में बेजोड़ है तथा सांसारिक साहित्य में अति उत्कृष्ट है। सूरदास के बाल वर्णन पर मुग्ध आचार्य शुक्ल का बयान है "जितने विशद् तथा विस्तृत रूप में बाल्य जीवन का चित्रण सूरदास जी ने किया है, उतने विस्तृत रूप में किसी कवि ने नहीं किया। उनके साहित्य में एकमात्र बाह्य रूपों तथा चेष्टाओं की ही विस्तृत तथा सूक्ष्म उल्लेख नहीं है, वरन् सूरदास जी ने बालक कृष्ण के अन्तः स्वभाव में भी प्रवेश किया तथा तमाम बाल्य भावों की सुन्दर नैसर्गिक व्यंजना की है।"
यशोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै दुलराई मल्हावे जोई सोई कछु गावै ।।
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केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग
शिवलिंग का वृत्ताकार ऊर्ध्वभाग ब्रह्माण्ड का द्योतक माना जाता है। इस मन्दिर में पशुपतिनाथ के साथ उनके परिवार (शिव परिवार) की सुन्दर एवं वृहद् प्रतिमाओं को भी स्थापित किया गया है।

मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित - गुरु एवं शुक्र के फल
प्रस्तुत लेखमाला \"कैसे करें सटीक फलादेश?\" के अन्तर्गत मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित सूर्यादि नवग्रहों के फलों का विवेचन किया जा रहा है, जिसमें अभी तक सूर्य से बुध तक के फलों का विवेचन किया जा चुका है। उसी क्रम में प्रस्तुत आलेख में गुरु एवं शुक्र के नवम भाव में राशिगत, भावगत, नक्षत्रगत, युतिजन्य व दृष्टिजन्य फलों का विवेचन कर रहे हैं।

उत्तर दिशा का महत्त्व और उसके गुण-दोष
उत्तर दिशा के ऊँचा होने या उत्तर दिशा में किसी भी प्रकार का वजन होने पर अथवा वहाँ पर पृथ्वी तत्त्व आने पर जलतत्त्व की खराबी हो जाती है।

इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
इटली का निकोलाई मनुची 1656 से 1717 में अपनी मृत्यु पर्यन्त भारत में ही रहा और मुगलों सहित विभिन्न सेनाओं में सेनानायक के रूप में रहा।

'कश्मीर' पूर्व में था 'कश्यपमीर'!
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में दिल्ली में एक किताब के विमोचन कार्यक्रम में कहा था कि 'कश्मीर' को 'कश्यप की भूमि' के नाम से जाना जाता है।

क्यों सफल नहीं हो पा रही है गुजरात की 'गिफ्ट सिटी' एक वास्तु विश्लेषण
गिफ्ट सिटी की प्लानिंग इस प्रकार की गई है कि साबरमती नदी इसकी पश्चिम दिशा में है। यदि इसके विपरीत गिफ्ट सिटी की प्लानिंग साबरमती नदी के दूसरी ओर की गई होती, तो गिफ्ट सिटी की पूर्व दिशा में आ जाती।

त्रिक भाव रहस्य - षष्ठ भाव और अभिवृद्धि
षष्ठ भाव एक ओर तो हमें विभिन्न प्रकार के रोगों और शत्रुओं से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है, वहीं दूसरी ओर ऋण अर्थात् कर्ज के लेन-देन के विषय में ताकतवर बनाता है।

लोककल्याणकारी देवता शिव
देवाधिदेव शिव लोककल्याणकारी देवता हैं। शिव अनादि एवं अनन्त हैं। शिव शक्ति का ही आदिरूप त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश में शिव को जहाँ संहार देवता माना है, वहाँ उनका आशुतोष रूप है अर्थात् शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव।

प्रयागराज महाकुम्भ का शुभारम्भ - रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालुओं ने किया संगम स्नान
प्रयागराज महाकुम्भ, 2025 ने 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा) को अपने शुभारम्भ से ही एक नए इतिहास की रचना की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। यह महाकुम्भ अपने प्रत्येक आयोजन में नया इतिहास रचता है।

रात्रि जागरण एवं चार प्रहर पूजा - 26 फरवरी, 2025 (बुधवार)
नकेवल शैव धर्मावलम्बियों के लिए, वरन् समस्त सनातनधर्मियों के लिए 'महाशिवरात्रि' एक बड़ा पर्व है। इस पर्व के तीन स्तम्भ हैं: 1. उपवास, 2. रात्रि जागरण, 3. भगवान् शिव का पूजन एवं अभिषेक।