![सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल](https://cdn.magzter.com/1382621400/1717239225/articles/vayhOmmzt1717485129027/1717485421191.jpg)
अर्द्धरात्रि के उपरान्त उत्तरी आकाश में ध्रुवतारे के समीप जो सात चमकते हुए तारों का समूह दिखाई देता है, उसे 'सप्तर्षि मण्डल' कहते हैं। सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल का महत्त्व हिन्दू धर्म, संस्कृति एवं ज्योतिष में समान रूप से है।
पुराणों के अनुसार प्रत्येक कल्प में 14 मनु होते हैं। कल्प भारतीय ज्योतिष एवं हिन्दू धर्मशास्त्र में समय की सबसे बड़ी इकाई है। 1,000 महायुगों से मिलकर एक कल्प बनता है और इसमें 4 अरब 32 करोड़ सौर वर्ष होते हैं। प्रत्येक मनु के काल को 'मन्वन्तर' कहा जाता है। प्रत्येक मन्वन्तर में देवता, इन्द्र, सप्तर्षि और मनु पुत्र भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे ही मन्वन्तर बदलता है, तो मनु भी बदल जाते हैं और उनके साथ ही सप्तर्षि, देवता, इन्द्र आदि भी बदल जाते हैं। वर्तमान कल्प के जो 14 मनु हैं और उनके नाम से जो 14 मन्वन्तर हैं, वे इस प्रकार हैं :
(1) स्वायम्भुव, (2) स्वारोचिष, (3) उत्तमज (औत्तम), (4) तामस, (5) रैवत, (6) चाक्षुष, (7) वैवस्वत, (8) सावर्णि, (9) दक्षसावर्णि, (10) ब्रह्मसावर्णि, (11) धर्मसावर्णि, (12) रुद्रसावर्णि, (13) देवसावर्णि तथा ( 14 ) इन्द्रसावर्णि।
पहले मनु स्वायम्भुव मनु हैं और उनका मन्वन्तर 'स्वायम्भुव मन्वन्तर' कहलाता है। इस मन्वन्तर सप्तर्षियों के नाम इस प्रकार हैं: (1) मरीचि, (2) अत्रि, (3) अंगिरा, (4) पुलस्त्य, (5) पुलह, (6) क्रतु तथा (7) वसिष्ठ।
ये ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं और इन्होंने गृहस्थ जीवन या किया था। इनकी पत्नियों में मरीचि की सम्भूति, अत्रि की अनसूया, पुलह की क्षमा, पुलस्त्य की प्रीति, ऋतु की सन्नति, अंगिरा की लज्जा और वसिष्ठ की अरुन्धती हैं। ये लोकमाता कहलाती हैं। वराहमिहिर के अनुसार पूर्व दिशा में मरीचि, उनसे पश्चिम में वसिष्ठ, वसिष्ठ से पश्चिम में अंगिरा, अंगिरा के बाद अत्रि, अत्रि के समीप पुलस्त्य, उनके बाद पुलह और पुलह के बाद ऋतु क्रमश: पूर्व दिशा से होते हैं और इनके मध्य में अरुन्धती वसिष्ठ के समीप हैं-
この記事は Jyotish Sagar の June 2024 版に掲載されています。
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![केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1976974/SuR0wj8HF1738759486501/1738759610756.jpg)
केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग
शिवलिंग का वृत्ताकार ऊर्ध्वभाग ब्रह्माण्ड का द्योतक माना जाता है। इस मन्दिर में पशुपतिनाथ के साथ उनके परिवार (शिव परिवार) की सुन्दर एवं वृहद् प्रतिमाओं को भी स्थापित किया गया है।
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मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित - गुरु एवं शुक्र के फल
प्रस्तुत लेखमाला \"कैसे करें सटीक फलादेश?\" के अन्तर्गत मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित सूर्यादि नवग्रहों के फलों का विवेचन किया जा रहा है, जिसमें अभी तक सूर्य से बुध तक के फलों का विवेचन किया जा चुका है। उसी क्रम में प्रस्तुत आलेख में गुरु एवं शुक्र के नवम भाव में राशिगत, भावगत, नक्षत्रगत, युतिजन्य व दृष्टिजन्य फलों का विवेचन कर रहे हैं।
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उत्तर दिशा का महत्त्व और उसके गुण-दोष
उत्तर दिशा के ऊँचा होने या उत्तर दिशा में किसी भी प्रकार का वजन होने पर अथवा वहाँ पर पृथ्वी तत्त्व आने पर जलतत्त्व की खराबी हो जाती है।
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इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
इटली का निकोलाई मनुची 1656 से 1717 में अपनी मृत्यु पर्यन्त भारत में ही रहा और मुगलों सहित विभिन्न सेनाओं में सेनानायक के रूप में रहा।
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केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में दिल्ली में एक किताब के विमोचन कार्यक्रम में कहा था कि 'कश्मीर' को 'कश्यप की भूमि' के नाम से जाना जाता है।
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क्यों सफल नहीं हो पा रही है गुजरात की 'गिफ्ट सिटी' एक वास्तु विश्लेषण
गिफ्ट सिटी की प्लानिंग इस प्रकार की गई है कि साबरमती नदी इसकी पश्चिम दिशा में है। यदि इसके विपरीत गिफ्ट सिटी की प्लानिंग साबरमती नदी के दूसरी ओर की गई होती, तो गिफ्ट सिटी की पूर्व दिशा में आ जाती।
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त्रिक भाव रहस्य - षष्ठ भाव और अभिवृद्धि
षष्ठ भाव एक ओर तो हमें विभिन्न प्रकार के रोगों और शत्रुओं से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है, वहीं दूसरी ओर ऋण अर्थात् कर्ज के लेन-देन के विषय में ताकतवर बनाता है।
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लोककल्याणकारी देवता शिव
देवाधिदेव शिव लोककल्याणकारी देवता हैं। शिव अनादि एवं अनन्त हैं। शिव शक्ति का ही आदिरूप त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश में शिव को जहाँ संहार देवता माना है, वहाँ उनका आशुतोष रूप है अर्थात् शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव।
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प्रयागराज महाकुम्भ का शुभारम्भ - रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालुओं ने किया संगम स्नान
प्रयागराज महाकुम्भ, 2025 ने 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा) को अपने शुभारम्भ से ही एक नए इतिहास की रचना की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। यह महाकुम्भ अपने प्रत्येक आयोजन में नया इतिहास रचता है।
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रात्रि जागरण एवं चार प्रहर पूजा - 26 फरवरी, 2025 (बुधवार)
नकेवल शैव धर्मावलम्बियों के लिए, वरन् समस्त सनातनधर्मियों के लिए 'महाशिवरात्रि' एक बड़ा पर्व है। इस पर्व के तीन स्तम्भ हैं: 1. उपवास, 2. रात्रि जागरण, 3. भगवान् शिव का पूजन एवं अभिषेक।