![गोचराष्टक वर्ग से शनि के गोचर का अध्ययन गोचराष्टक वर्ग से शनि के गोचर का अध्ययन](https://cdn.magzter.com/1382621400/1717239225/articles/nvu03X-qv1717485453437/1717485866948.jpg)
[ साढ़ेसाती और ढैया के विशेष सन्दर्भ में ]
'ल' ष्टकवर्ग 'निश्चयात्मक ज्योतिषशास्त्र' है। महर्षि पराशर की मान्यता है कि “मनुष्यों की आयु का ज्ञान और जीवन में आने वाले सुख-दुःख का ज्ञान ही ज्योतिष का प्रयोजन है, लेकिन बृहस्पति या वसिष्ठ भी जब स्वयं निश्चय से फलकथन नहीं कर सकते, तब सामान्य मनुष्यों की क्या सामर्थ्य है।” इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए बृहत्पाराशरहोराशास्त्र में 'अष्टकवर्ग पद्धति' का प्रतिपादन किया गया और इसे 'विशेष ज्योतिषशास्त्र' की संज्ञा दी गई। अष्टकवर्ग के महत्त्व को रेखांकित करते हुए जातकपारिजात के लेखक वैद्यनाथ लिखते हैं कि "कुण्डली में ग्रह चाहे अपने घर में हो, उच्च में हो, मित्रों के वर्ग में हो, चाहे केन्द्रबल हो या अन्य किसी प्रकार का बल हो, यदि वह ऐसी राशि में जाता है, जिसमें उसे शुभ रेखाएँ कम प्राप्त होती हैं, तो ऐसा ग्रह अनिष्टफल देता है।"
इसके विपरीत “चाहे ग्रह दष्ट स्थान में स्थित हो, नीचराशि में हो, शत्रुराशि में हो, शत्रुओं के वर्ग में हो, किन्तु वह अष्टकवर्ग में अधिक शुभ रेखाओं से त राशि में स्थित हो, तो शुभफल प्रदान करता है।” इस प्रकार होरामकरन्द में गुणाकर लिखते हैं" ग्रहों का गोचरफल एक राशि वाले मनुष्यों को एक जैसा मिलकर भिन्न-भिन्न प्राप्त होता है। सूर्यादि सप्तग्रह एवं लग्न के अष्टकवर्ग से जातक के जीवन में आने शुभाशुभ फलों का सूक्ष्म ज्ञान होता है।"
अष्टकवर्ग पद्धति के अन्तर्गत ग्रहों के बलाबल और उनकी शुभाशुभता का ज्ञान उनके भिन्नाष्टक वर्गों से तथा भावों के शुभाशुभ फलों का ज्ञान सर्वाष्टक वर्ग से किया जाता है। इसी प्रकार गोचरफल सूक्ष्म ज्ञान गोष्टकवर्ग से किया जाता है।
जैसाकि विदित है, गोचराष्टक वर्ग में एक राशि को आठ कक्षाओं में विभक्त किया जाता है और प्रत्येक कक्षा का विस्तार 03 अंश 45 कला होता है। ये आठ कक्षाएँ क्रमश: शनि, गुरु, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध, चन्द्रमा और लग्न की होती है। राशि का इस प्रकार से कक्षाओं में विभाजन को अष्टकवर्ग में 'कक्षा सिद्धान्त' के नाम से जाना जाता है। ये कक्षाएँ इस प्रकार हैं :
गोचराष्टक वर्ग से फलित के सिद्धान्त
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![केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1976974/SuR0wj8HF1738759486501/1738759610756.jpg)
केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग
शिवलिंग का वृत्ताकार ऊर्ध्वभाग ब्रह्माण्ड का द्योतक माना जाता है। इस मन्दिर में पशुपतिनाथ के साथ उनके परिवार (शिव परिवार) की सुन्दर एवं वृहद् प्रतिमाओं को भी स्थापित किया गया है।
![मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित - गुरु एवं शुक्र के फल मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित - गुरु एवं शुक्र के फल](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1976974/C7d1RAaMZ1738758957083/1738759235341.jpg)
मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित - गुरु एवं शुक्र के फल
प्रस्तुत लेखमाला \"कैसे करें सटीक फलादेश?\" के अन्तर्गत मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित सूर्यादि नवग्रहों के फलों का विवेचन किया जा रहा है, जिसमें अभी तक सूर्य से बुध तक के फलों का विवेचन किया जा चुका है। उसी क्रम में प्रस्तुत आलेख में गुरु एवं शुक्र के नवम भाव में राशिगत, भावगत, नक्षत्रगत, युतिजन्य व दृष्टिजन्य फलों का विवेचन कर रहे हैं।
![उत्तर दिशा का महत्त्व और उसके गुण-दोष उत्तर दिशा का महत्त्व और उसके गुण-दोष](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1976974/mOmP8ZTNZ1738757679180/1738758947805.jpg)
उत्तर दिशा का महत्त्व और उसके गुण-दोष
उत्तर दिशा के ऊँचा होने या उत्तर दिशा में किसी भी प्रकार का वजन होने पर अथवा वहाँ पर पृथ्वी तत्त्व आने पर जलतत्त्व की खराबी हो जाती है।
![इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1976974/ED_fCI6K71738760919210/1738761138370.jpg)
इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
इटली का निकोलाई मनुची 1656 से 1717 में अपनी मृत्यु पर्यन्त भारत में ही रहा और मुगलों सहित विभिन्न सेनाओं में सेनानायक के रूप में रहा।
!['कश्मीर' पूर्व में था 'कश्यपमीर'! 'कश्मीर' पूर्व में था 'कश्यपमीर'!](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1976974/uGgQp601J1738760064125/1738760413706.jpg)
'कश्मीर' पूर्व में था 'कश्यपमीर'!
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में दिल्ली में एक किताब के विमोचन कार्यक्रम में कहा था कि 'कश्मीर' को 'कश्यप की भूमि' के नाम से जाना जाता है।
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क्यों सफल नहीं हो पा रही है गुजरात की 'गिफ्ट सिटी' एक वास्तु विश्लेषण
गिफ्ट सिटी की प्लानिंग इस प्रकार की गई है कि साबरमती नदी इसकी पश्चिम दिशा में है। यदि इसके विपरीत गिफ्ट सिटी की प्लानिंग साबरमती नदी के दूसरी ओर की गई होती, तो गिफ्ट सिटी की पूर्व दिशा में आ जाती।
![त्रिक भाव रहस्य - षष्ठ भाव और अभिवृद्धि त्रिक भाव रहस्य - षष्ठ भाव और अभिवृद्धि](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1976974/22FZEY1N41738756708777/1738756961143.jpg)
त्रिक भाव रहस्य - षष्ठ भाव और अभिवृद्धि
षष्ठ भाव एक ओर तो हमें विभिन्न प्रकार के रोगों और शत्रुओं से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है, वहीं दूसरी ओर ऋण अर्थात् कर्ज के लेन-देन के विषय में ताकतवर बनाता है।
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लोककल्याणकारी देवता शिव
देवाधिदेव शिव लोककल्याणकारी देवता हैं। शिव अनादि एवं अनन्त हैं। शिव शक्ति का ही आदिरूप त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश में शिव को जहाँ संहार देवता माना है, वहाँ उनका आशुतोष रूप है अर्थात् शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव।
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प्रयागराज महाकुम्भ का शुभारम्भ - रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालुओं ने किया संगम स्नान
प्रयागराज महाकुम्भ, 2025 ने 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा) को अपने शुभारम्भ से ही एक नए इतिहास की रचना की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। यह महाकुम्भ अपने प्रत्येक आयोजन में नया इतिहास रचता है।
![रात्रि जागरण एवं चार प्रहर पूजा - 26 फरवरी, 2025 (बुधवार) रात्रि जागरण एवं चार प्रहर पूजा - 26 फरवरी, 2025 (बुधवार)](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1976974/PqYFAHF5A1738760718820/1738760902571.jpg)
रात्रि जागरण एवं चार प्रहर पूजा - 26 फरवरी, 2025 (बुधवार)
नकेवल शैव धर्मावलम्बियों के लिए, वरन् समस्त सनातनधर्मियों के लिए 'महाशिवरात्रि' एक बड़ा पर्व है। इस पर्व के तीन स्तम्भ हैं: 1. उपवास, 2. रात्रि जागरण, 3. भगवान् शिव का पूजन एवं अभिषेक।