वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
Jyotish Sagar|September 2024
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
डॉ. अदिति गौड़
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति

नृत्य दो प्रकार के होते हैं-एक नाट्य और द्वितीय अनाट्य। नृत्यकला प्राचीन काल से ही उन्नत अवस्था में रही है। वर्षा ऋतु में घन गर्जना के साथ मयूर का आनन्दित करने वाला नृत्य तन-मन को प्रफुल्लित कर देता है।

राजस्थान के सुदूर दक्षिण छोर पर स्थित बाँसवाड़ा अपनी ऐतिहासिक कला एवं प्राचीन संस्कृति के कारण के कारण पुराणों में पुष्प प्रदेश, गुप्त प्रदेश, पाताल प्रदेश आदि नामों से वर्णित है।

इस प्रदेश में अनेक भव्य एवं ऐतिहासिक देवालय एवं सुरम्य प्राकृतिक स्थल स्थित हैं। बाँसवाड़ा से लगभग 14 कि.मी. दूर पश्चिम में बाँसवाड़ा-डूंगरपुर मार्ग पर स्थित तलवाड़ा प्राचीन समय में स्थापत्य कला के क्षेत्र में अग्रणी रहा है। इस क्षेत्र में शिल्प-वैभव से पूरित प्राचीन देवालय जो लगभग 10-12वीं सदी के मध्य के निर्मित हैं।

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