जय सोमनाथ सोमनाथ का स्थापत्य
Kendra Bharati - केन्द्र भारती|February 2023 Issue
श्रीमती दीपा महेश दलाल, श्रीमती जानकी शैलेष वैद्य
जय सोमनाथ सोमनाथ का स्थापत्य

सोमनाथ का स्थापत्य इसका वर्णन करन 'सोम' अर्थात 'चन्द्रमा को फिर से पृथ्वी पर लाने जैसा है। क्योंकि सोमनाथ केवल इसी युग का स्थापत्य नहीं है। इसका वर्णन करने के लिए इसे दो भागों में विभाजित करना होगा। १) प्राचीन वास्तुकला और २) पुरातन वास्तुकला। अनादि काल से प्रतिष्ठित और यारह ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख, यह वास्तुकला अरब सागर की गोद में खेलती और इसका ऐतिहासिक महत्त्व भी है। यह भी कहा जा सकता है कि सिन्धु सागर (अरब सागर) ने कई बार इस वास्तुकला के निर्माण, विध्वंस और पुनर्निर्माण को देखा है, उसका साक्षी है। सोमनाथ की प्राचीन वास्तुकला का वर्णन करने से पहले में श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी को नमन करता हूँ। सोमनाथ की प्राचीन वास्तुकला का वर्णन, जैसा कि श्री क. मा. मुंशी ने अपने उपन्यास 'जय सोमनाथ' में बखूबी किया है, सोमनाथ का देवालय एक बहुत ही सुन्दर और अद्भुत मन्दिर था।

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, इस मन्दिर का निर्माण सतयुग में राजा सोम ने स्वर्ण से करवाया था। उसके बाद त्रेता युग में रावण ने भगवान शिव की बहुत घनिष्ठ पूजा और तपस्या की, और अपने नौ सिर कमलपुष्प के रूप में भगवान शिव के चरणों में अर्पित कर दिए। जब शिवभक्त रावण शिवजी को अर्पित करने के लिए अपना दसवां सिर काटने गया, तो मोलेनाथ प्रकट हुए और प्रसन्न होकर रावण के सिर के बाकी हिस्सों को फिर से जीवित कर दिया, तब रावण ने यह मन्दिर चांदी का बनवाया। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में फाष्ट से इस मन्दिर का निर्माण किया था। इस मन्दिर की वास्तुकला बहुत सुन्दर थी। हजारों वर्ष पहले शिव का यह मन्दिर बहुत भव्य था, इसमें ५६ रतम्भ थे और प्रत्येक स्तम्भ सोने चांदी और हीरे के आभूषणों से जड़ा हुआ था। इसके अलावा, गर्भगृह में हीरे से जड़ी सोने की मूर्तियाँ थी। यह गर्भगृह इतना विशाल था कि लगभग १००० पुजारी एक साथ भगवान की पूजा कर सकते थे।

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