आयुर्वेद के क्षेत्र में संत श्री आशारामजी बापू का योगदान
Rishi Prasad Hindi|October 2022
शाश्वत संबंध की स्मृति किये बिना जीव का कहीं परम कल्याण नहीं होता। 
आयुर्वेद के क्षेत्र में संत श्री आशारामजी बापू का योगदान

जीवन का शायद ही कोई ऐसा पहलू होगा जो मानवमात्र के मंगल की सद्भावना से छलक रहे पूज्य संत श्री आशारामजी बापू के हृदय से अछूता रहा हो। धर्म का रहस्य, योग का सामर्थ्य, संस्कारों का सिंचन, ऐहिक तथा पारमार्थिक सफलता, व्यसनों, तनावों से मुक्ति, उत्तम स्वास्थ्य... हर विषय में पूज्य बापूजी के सत्संग-मार्गदर्शन से कितने करोड़ लोगों के जीवन में कितने विलक्षण और अभूतपूर्व परिवर्तन हुए, सब गणितज्ञ और विज्ञानी मिलकर भी उनकी गणना और बखान नहीं कर सकते। 

आयुर्वेद विभाग, हिमाचल प्रदेश के उपनिदेशक डॉ. सुंदर शर्मा कहते हैं : " संत श्री आशारामजी आश्रम से हमें मानव-सेवा कैसे हो इसकी प्रेरणा मिलती है।"

निरोगी तन और प्रसन्न मन वाले व्यक्तियों को कर्म, भक्ति और ज्ञान के मार्ग पर दृढ़ता से चलने में बड़ी सुगमता होगी, इस बात को ध्यान में रखते हुए पूज्य बापूजी ने ब्रह्मज्ञान के सत्संग के साथ-साथ आयुर्वेद का प्रचार-प्रसार भी व्यापकता से किया है।

चरक संहिता (सूत्रस्थान : १.१५) में लिखा है : 

धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यं मूलमुत्तमम्।

'धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - इन चारों पुरुषार्थों का मूल कारण आरोग्य ही है।'

पूज्यश्री ने यह भी बताया कि उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त करने के पीछे मनुष्य का उद्देश्य शरीर को भोगप्राप्ति के साधनों में लगाना नहीं है अपितु जीवन की मूलभूत आवश्यकता अपने शाश्वत सच्चिदानंद स्वभाव की प्राप्ति में सक्षम बनना है।

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