विमल विवेक जगा के परमेश्वर के माधुर्य को पा लो
Rishi Prasad Hindi|September 2023
जिस शरीर को छोड़ जाना है उसके अहं को सजाने में जिंदगी तबाह हो जाती है और जो साथ में रहना है उसको व्यक्ति पाता ही नहीं है क्योंकि विवेक की कमी है। लौकिक विवेक तो है परंतु सत्य-असत्य का विवेक नहीं है, सार-असार का विवेक नहीं है। सार के लिए प्रयत्न करें, असार से थोड़ा-सा उपराम हो जायें, सच्चाई का आसरा लें। बस, सारी बाजी जीत लें। 
पूज्य बापूजी
विमल विवेक जगा के परमेश्वर के माधुर्य को पा लो

बड़े-बड़े तीसमारखाँ संसार-सागर में डूब गये, बड़े-बड़े राजे-महाराजे प्रेत होकर भटके। राजा नृग गिरगिट व राजा अज अजगर बन गया, मुसोलिनी जैसा होशियार तानाशाह भी प्रेत हो के भटक रहा है, रावण जैसा बलवान दैत्य भी मारा जाता है लेकिन भोगी राजा थे और विमल विवेक जग गया तो विश्वामित्रजी गुरु होकर पूजे जाते हैं, भगवान श्रीराम और लक्ष्मण उनकी चरणचम्पी करते हैं। 

तो यह संसार अथाह दरिया है। 'यह पा लूँ तो सुखी हो जाऊँ... इतना कर लूँ तो सुखी हो जाऊँ... इनको यार बना लूँ तो काम आयेंगे....' ऐसा करते-करते जिंदगी के दिन नष्ट हो रहे हैं। जो हृदय में सच्चा साथी, सच्चा सहायक, सच्चा सुखदाता बैठा है, विमल विवेक की कमी के कारण उसमें मन डूबता नहीं है, उसमें बुद्धि गोता मारती नहीं है। मन-इन्द्रियाँ सोचती हैं कि 'छल-कपट करके संसार का सुख पा लूँ।' उसी सुख-सुख में कई तबाह हो गये, कई मर गये। हजारोंहजारों दूसरे जन्म लेने के बाद फिर मनुष्य हुए और विमल विवेक की कमी के कारण फिर वही किया।

Bu hikaye Rishi Prasad Hindi dergisinin September 2023 sayısından alınmıştır.

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