माँ-बाप की इकलौती कन्या थी सरस्वती। उसकी माता का नाम श्रीकीर्ति और पिता का नाम मतिमान था। घर में श्रीगोपालजी का मंदिर था। बूढ़े श्रुतदेव पुजारी ठाकुरजी की पूजा करते थे। सरस्वती देखते-देखते पूजा सीख गयी। माता-पिता पुजारी के साथ अपनी कन्या को ठाकुरजी की लगी देख बड़े खुश होते थे। वे श्रुतदेव पूजा कोई साधारण पुजारी नहीं थे, उनको संतान नहीं थी तो ठाकुरजी को ही उन्होंने अपना पुत्र मान रखा था।
भगवान ही एक ऐसे हैं जो पुत्र होने को तैयार, माता-पिता होने को तैयार, बंधु-सखा होने को भी तैयार!
सरस्वती ने पूछा: "ये कौन हैं?"
पुजारी बोले: "ये गोपाल हैं गोपाल!"
"आपके क्या लगते हैं ?"
"मेरे बेटे लगते हैं।"
"आप मेरे को बेटी बोलते हो और ये आपके बेटे हैं तो हम भाई-बहन हो गये?"
"हाँ, वह तेरा भैया है।"
सरस्वती के शुद्ध हृदय में पक्का हो गया कि 'मंदिर के बाँके बिहारी मेरे भाई लगते हैं।'
This story is from the July 2024 edition of Rishi Prasad Hindi.
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ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।