आजकल कुनबे, परिवार एवं घर सिकुड़ते से जा रहे हैं. जहां पहले यदि बड़े कुनबे की बहू परिवार में आती थी तो उसे अच्छा माना जाता था क्योंकि बड़ा कुनबा इस बात की पहचान होता था कि सभी रिश्तेदारों में आपसी तालमेल अच्छा है. वे सभी एकदूसरे के साथ सुखदुख में खड़े भी होते थे. यह तालमेल बैठाना कोई आसान काम नहीं होता. नाजुक रिश्तों की डोर को मजबूत करने के लिए सभी की पसंदनापसंद का खयाल रखना अति आवश्यक होता है.
यह हर किसी के बस की बात नहीं कि वह डोर की मजबूती को बरकरार रख सके. इस के लिए ईमानदारी, वाणी पर संयम, मन में भेदभाव न होना, स्वार्थ से परे होना, धैर्यवान होना अदि कई गुण बेहद जरूरी है.
कई लोग जराजरा सी बात पर नाराज हो कर बैठ जाते हैं. उन्हें बारबार मनाओ, मनुहार करो तब वे पुनः साधारण व्यवहार करने लगते हैं. लेकिन ऐसे लोगों का कुछ पता ही नहीं चलता कि वे किस बात पर कब नाराज हो जाएं या तो लोग उन की पदप्रतिष्ठा के कारण उन के सामने झुक कर व्यवहार करते हैं या फिर रिश्तों को निभाने की मजबूरी. लेकिन लोग उन्हें दिल से कम ही पसंद करते हैं.
व्यवहार सही रखें
ऐसे ही उदाहरण यहां पेश हैं कि कैसे तुनकमिजाजी व्यवहार के कारण रिश्तों में खटास पैदा हो गई:
अमृता का विवाह दिल्ली के सी.ए. विपिन से हुआ. उन के ब्याह में फेरों के समय जब अमृता की चचेरी बहनों ने जूते छिपाई की रस्म के समय अपने होने वाले जीजा के जूते ढूंढ़ने चाहे तो वे नहीं मिले. मालूम हुआ कि जीजा का छोटा भाई जूतों को कमरे में रखने गया है. सालियों ने सोचा कमरे में भला कैसे दाखिल हों. सो अपने भाई को भी इस में शामिल किया और उस से कहा कि तुम कमरे से जूते बाहर ले आओ. जिस कमरे में जीजा का छोटा भाई जूतों के साथ बैठा था वह वहां गया और पूरे कमरे में नजर दौड़ाई.
इसी बीच नींद में ऊंघते जीजा के भाई को लगा कि न जाने कौन कमरे में घुस आया. सो उस ने आव देखा न ताव और वह उस पर टूट पड़ा. इस के बाद दोनों में खूब झड़प हुई और फेरों के बीच दोनों पक्षों में कहासुनी हो गई. दूल्हा थोड़ा समझदार था जो दोनों पक्षों के बड़ों से माफी मांगता रहा. जैसेतैसे ब्याह संपन्न हुआ.
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