सांवली सूरत खूबसूरती का वरदान
Grihshobha - Hindi|September First 2024
बेशक सांवली हो रंगत मगर यदि आत्मविश्वास से भरपूर हैं तो यकीन मानिए, जमाना आप के कदमों में होगा....
गरिमा पंकज
सांवली सूरत खूबसूरती का वरदान

प्रकृति ने हर किसी को एक अलग रंगरूप से नवाजा है. हर किसी के अंदर कुछ खूबियां हैं तो कुछ कमियां. किसी का रंग सांवला है तो किसी का गोरा. दुनिया की कोई क्रीम किसी को गोरा या काला नहीं कर सकती है. यह सब जन्म से होता है. तो फिर उसे ले कर हीनभावना या घमंड क्यों?

दरअसल, हीनभावना या घमंड की वजह हमारा सामाजिक परिवेश है जो सांवले को कमतर और गोरे को श्रेष्ठ और बेहतर मानता है. ऐसा नहीं है कि गोरेपन की सोच केवल भारत में ही है बल्कि पूरी दुनिया में इस की जड़ें गहरी हैं. गोरे होने का मतलब यह नहीं कि आप खूबसूरत ही हैं जबकि बहुत सी सांवली लड़कियां भी बेहद खूबसूरत होती हैं.

गोरेकाले का भेद

दुनिया की अलगअलग जगहों में अलग रंग, प्रजाति और भाषाओं के लोग मौजूद हैं. सैकड़ों साल पहले भारत के मूल निवासी द्रविड़ प्रजाति के लोग थे, उन की त्वचा का रंग सांवला और काला था. जब गोरे अंगरेज हमारे देश में आए तो वे हमारे राजा बन बैठे और हम उन की प्रजा बनने को मजबूर हो गए. अंगरेजों की त्वचा गोरी थी और हम भारतीय सांवले या काले थे. ऐसे में उसी समय से हम भारतीयों के मन में यह बात बैठ गई कि जो गोरा है वह शासक है और जो काला है वह उस का सेवक है.

भारत में जाति व्यवस्था भी हजारों सालों से चली आ रही है. इस के आधार पर ब्राह्मण सब से ऊपर आते थे और शूद्र इस व्यवस्था के अंत में. ब्राह्मण मंदिरों और घरों में बैठ कर ही पूजापाठ करते थे इसलिए उन का रंग अन्य लोगों की तुलना में साफ होता था. वहीं मजदूर वर्ग के लोग कड़ी धूप में भी काम करने को मजबूर थे इसलिए उन की त्वचा धूप में और काली हो जाती थी. इस तरह हमारे देश में जाति और कर्म के आधार पर भी रंग का भेदभाव शुरू हुआ और आज तक चल रहा है.

पूरी दुनिया में रंगभेद का जाल

Denne historien er fra September First 2024-utgaven av Grihshobha - Hindi.

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