विश्वास
Naye Pallav|Naye Pallav 17
“उर्मि ! यह क्या हालत बना रखी है तुमने? अब देखा नहीं जाता। तुम्हारी दयनीय हालत, स्वास्थ्य और अजब की वेशभूषा देखकर अचंभित हूं मैं।
रतिकान्त पाठक 'बाबा'
विश्वास

क्यों दिन-ब-दिन ऐसी होती जा रही हो? अब तो लगता ही नहीं कि तुम वही उर्मिला हो जो अपनी नौकरी पर पहले-पहल आयी थी। क्या खिला हुआ चेहरा-पहनावा भी एक ढंग का था। बोलती तो लगता मधु चू रहा है। सतरह-अठारह साल का नव-जवान खिला हुआ चेहरा, श्यामवर्ण, लाल-लाल होंठ, कमर छूती बाल, खूबसूरती की सारी मिशाल मौजूद! मालूम होता था कि स्वर्ग की परी धरती पर उतर आयी है, पर कुछ सालों में ही उसे ऐसा देखकर किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो गया हूं। तुम्हें क्या कष्ट है? मुझे अगर बताओ तो हो सकता है कि डूबते को तिनके का सहारा होने का प्रयास करूं।”

"नहीं बाबा, अब मुझे ऐसे ही रहने दीजिए। भगवान की इच्छा सर्वोपरि है।”

"क्या कहती हो तुम? मनुष्य अगर मन को ठोस कर ले तो तील का ताड़ और ताड़ का तील कर सकता है, तुम तो अभी जवान हो, अच्छा खासा कमाती हो, पति भी वकील है और उनका भी प्रैक्टिस अच्छा ही है। बाल-बच्चे का बोझ है ही नहीं। फिर ऐसी क्या बात है? बोलो न, क्या बात है?"

"बाबा ! मेरी तकलीफ का कोई ओर-छोर नहीं है। आप सुन नहीं पायेंगे, अतः आप न कुरेदें।"

"नहीं उर्मिला.... नहीं। अपनी तकलीफ को अपनी जवान से अपने-पराये को कह देने से कम होती है। तुम सुनाओ तो सही।"

"नहीं बाबा! मेरी दुखभरी कहानी लंबी है। कभी मौका मिलेगा और आप समय देंगे तो सुनाऊंगी, अभी तो मरीजों को सुई देने एवं चार्ट नोट करने का समय हो गया है। डॉ. साहब 'राउन्ड' को आने ही वाले हैं।" 

"ठीक है! अर्मि, मैं तुम्हारी कहानी सुनना चाहता हूं। जब कहो, जहां कहो, मैं आ जाऊंगा।" इतना कह मैं अपने काम में लग गया।

This story is from the Naye Pallav 17 edition of Naye Pallav.

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तीन मछलियां
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एक नदी के किनारे उसी नदी से जुड़ा एक बड़ा जलाशय था। \"जलाशय में पानी गहरा होता है, इसलिए उसमें काई तथा मछलियों का प्रिय भोजन जलीय सूक्ष्म पौधे उगते हैं। ऐसे स्थान मछलियों को बहुत रास आते हैं। उस जलाशय में भी नदी से बहुत-सी मछलियां आकर रहती थीं। अंडे देने के लिए तो सभी मछलियां उस जलाशय में आती थीं। वह जलाशय लंबी घास व झाड़ियों द्वारा घिरा होने के कारण आसानी से नजर नहीं आता था।

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टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान
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समुद्रतट के एक भाग में एक टिटिहरी का जोड़ा रहता था। अंडे देने से पहले टिटिहरी ने अपने पति को किसी सुरक्षित प्रदेश की खोज करने के लिये कहा। टिटिहरे ने कहा \"यहां सभी स्थान पर्याप्त सुरक्षित हैं, तू चिन्ता न कर।\"

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लड़ते बकरे और सियार
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एक नेता का कबूलनामा
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हीरेजी को आप नहीं जानते और यह दुर्भाग्य की बात है। इसका यह अर्थ नहीं कि केवल आपका दुर्भाग्य है, दुर्भाग्य हीरोजी का भी है। कारण, वह बड़ा सीधा-सादा है। यदि आपका हीरोजी से परिचय हो जाए, तो आप निश्चय समझ लें कि आपका संसार के एक बहुत बड़े विद्वान से परिचय हो गया।

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