दूसरी नाक
Naye Pallav|Naye Pallav 18
लड़के पर जवानी आती देख जब्बार के बाप ने पड़ोस के गांव में एक लड़की तजवीज कर ली। लेकिन जब्बार ने हस्बा की लड़की शब्बू को, जो पानी भरकर लौटते देखा, तो उसकी सुध-बुध जाती रही।
यशपाल
दूसरी नाक

जैसे कथा कहानी में कहा जाता है कि शाहजादा नदी में बहता हुआ सोने का एक बाल देख सोने के केशधारी सुंदरी के प्रेम से आहत महल की अटारी में उपवास कर लेट गया था; बहुत कुछ वैसा ही हाल जब्बार का भी हुआ। मुंह से तो कुछ कह न सका, पर शिथिल शरीर, चेहरे का रंग उड़ा हुआ, कुछ खोया खोया सा वह रहने लगा।

मां-बाप ने उसकी हालत देखकर सलाह की। मुंह दर-मुंह नहीं, पर उसे सुना दिया कि ब्याह जल्दी ही उसका हो जाएगा। लड़की भी बच्चा नहीं, बिलकुल जवान है। शमसल की बड़ी बेटी जहुन्ना आसपास के चार गांवों में एक ही लड़की है। पानी का बड़ा मटका सिर पर उठाकर धमकती दो मील चली जाती है। घर भर का काम संभालती है अभी से ! यहां आ जाएगी तो जब्बार की मां को भी चैन मिलेगा। बूढ़ी हो गई बेचारी। पर जब्बार को इससे कुछ तसल्ली न हुई। वह अक्सर लंबी-लंबी आहे खींचकर चुपचाप पड़ा रहता।

एक रोज मां ने आंखों में आंसू भर अपनी कसम घराकर पूछा, तो उसने सच कह दिया। जहुन्ना की बात सुनने से भी उसने इनकार करके कहा, "या तो हस्बा की बेटी शब्बू, नहीं तो बस !...कुछ नहीं।"

मां-बाप ने बहुत समझाया। उसे सुनता देखते तो आपस में जहुन्ना की तारीफ और शब्बू की निंदा करने लगते। फिर जो लोग ऐसी बेशर्मी से ब्याह करते हैं, उनकी कितनी निंदा होती है, यह सब वे लड़के को काकोक्ति, अलंकार और रूपक द्वारा समझाकर हार गए। पर धुन का पक्का जब्बार न माना तो न माना।

बेटे की जिद्द से हार मान बूढ़ा गफ्फार एक रोज हस्बा से बात करने गया। जब बह लौटकर आया, तो क्रोध से उसकी आंखें लाल और ग्लानि से चेहरा विरूप हो रहा था। बंदूक कोने में रख कंधे की चादर जमीन पर फेंक वह जमीन पर ही बैठ गया।

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