Pratiman - July - December 2019Add to Favorites

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July - December 2019

यौन-हिंसा और भारतीय राज्य

विसंगतियों के आईने में

यौन-हिंसा और भारतीय राज्य

1 min

आर्थिक सुस्ती या पस्ती ?

वैकासिक मॉडल के फलितार्थों से फ़ौरी ग़लतियों तक

आर्थिक सुस्ती या पस्ती ?

1 min

हिंसक आर्थिकी का प्रतिरोध

मशीन को उसके उचित स्थान पर बैठाना

हिंसक आर्थिकी का प्रतिरोध

1 min

भारोपीय भाषा परिवार, हिंदी और उत्तर-औपनिवेशिकता

समीक्ष्य कृति हिंदी की जातीय संस्कृति और औपनिवेशिकता के शीर्षक से ही स्पष्ट है कि इसे उत्तर-आधुनिक, सबाल्टर्न और उत्तर-औपनिवेशिक विमर्श के 'सैद्धांतिक निष्कर्षों' के प्रभाव में लिखा गया है।

भारोपीय भाषा परिवार, हिंदी और उत्तर-औपनिवेशिकता

1 min

राजपूत और मुग़ल:संबंधों का आकलन

देशज इतिहासकारों की दृष्टि में

राजपूत और मुग़ल:संबंधों का आकलन

1 min

आदिवासी जीवन और वनवासी कल्याण आश्रम

भारत की जनजातियाँ (आदिवासी) एक समरूप इकाई नहीं हैं। उनकी विविधता वनों पर निर्भरता, आधुनिकता से जुड़ाव, बाहरी संगठनों के प्रभाव, अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता इत्यादि कई आयामों में व्यक्त होती है।

आदिवासी जीवन और वनवासी कल्याण आश्रम

1 min

अनवरत शांति और धर्मयुद्ध

स्थायी शांति की सम्भावना में आस्था न रखना मानव स्वभाव की दिव्यता में अविश्वास है।

अनवरत शांति और धर्मयुद्ध

1 min

कश्मीर - सरकारी विमर्श बनाम गाँधी, आम्बेडकर और लोहिया उर्मिलेश

केंद्रीय सत्ता हासिल करने के बाद शुरुआत में कुछ समय तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर मामले में कुछ रणनीतिक-लचीलेपन का संकेत दिया था। इसके परिणामस्वरूप कश्मीर के अंदर और बाहर के कुछ राजनीतिक प्रेक्षक और टिप्पणीकार इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की कश्मीर-नीति में बड़ा बदलाव मानने लगे थे। पर ऐसे लोगों को निराश होने में देर नहीं लगी।

कश्मीर - सरकारी विमर्श बनाम गाँधी, आम्बेडकर और लोहिया उर्मिलेश

1 min

मेरी अंग्रेज़ी की कहानी

अंग्रेज़ी जातिगत विशेषाधिकारों को मजबूत करती है, वर्गीय गतिशीलता के नियम तय करती है और व्यक्ति को एजेंसी से लैस करती है। क्या अंग्रेजों के सामाजिक इतिहास का कोई आत्मकथात्मक आयाम उसकी इस भूमिका की ख़बर दे सकता है? प्रस्तुत निबंध में इसी जोखिम से मुठभेड़ करने की कोशिश की गयी है।

मेरी अंग्रेज़ी की कहानी

1 min

कुछ कहें, कुछ करें

सामुदायिक मीडिया और सामाजिक परिवर्तन

कुछ कहें, कुछ करें

1 min

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Pratiman Magazine Description:

YayıncıVani Prakashan

kategoriCulture

DilHindi

SıklıkHalf-yearly

पहला दौर मुख्यतः अंग्रेज़ी में और यदा-कदा अन्य भारतीय भाषाओं में लिखी गयी बेहतरीन रचनाओं को अनुवाद और सम्पादन के जरिये हिन्दी में लाने का था। इसमें मिली अपेक्षाकृत सफलता के बाद अंग्रेज़ी से अनुवाद और सम्पादन पर जोर कायम रखते हुए भारतीय भाषाओं में भी समाज-चिन्तन करने की दिशा में बढ़ने की जरूरत महसूस हो रही थी। लेकिन इस पहलकदमी के साथ व्याहारिक और ज्ञानमीमांसक धरातल पर एक रचनात्मक मुठभेड़ की पूर्व-शर्त जुड़ी हुई थी। सीएसडीएस के स्वर्ण जयंती वर्ष में समाज-विज्ञान और मानविकी की अर्धवार्षिकी पूर्व-समीक्षित पत्रिकाप्रतिमान समय समाज संस्कृति का प्रकाशन इस शर्त की आंशिक पूर्ति कर सकता है। पिछले कुछ वर्षों में अध्ययन पीठ में अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी में भी लेखन करने वाले विद्वानों की संख्या बढ़ी है। साथ ही भारतीय भाषा कार्यक्रम के इर्द-गिर्द कुछ युवा और सम्भावनापूर्ण अनुसंधानकर्त्ता भी जमा हुए हैं। प्रतिमान का मक़सद इस जमात की जरूरते पूरी करते हुए हिन्दी की विशाल मुफस्सिल दुनिया में फैले हुए अनगिनत शोधकत्ताओं तक पहुँचना है। समाज-चिन्तन की दुनिया में चलने वाली सैद्धान्तिक बहसों और समसामयिक राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक विमर्श का केन्द्र बनने के अलावा यह मंच अन्य भारतीय भाषाओं की बौद्धिकता के साथ जुड़ने के हर मौके का लाभ उठाने की फ़िराक़ में भी रहेगा।

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