बीज का उत्पादन, प्रमाणीकरण एवं विपणन बीज कानूनों जैसे बीज अधिनियम1966, बीज नियम-1968 तथा भारतीय न्यूनतम बीज प्रमाणीकरण मानक- 2013 के अनुसार होता है। भारतीय न्यूनतम बीज प्रमाणीकरण मानक- 2013 के साधारण मानक के बिन्दु XXXI के अनुसार बीज का प्रथम बार जीवन काल 9 माह होता है और बीज को पुनः टैस्ट करवाने के बाद जीवन काल 6 माह प्रत्येक बार बढ़ाया जा सकता है, जब तक बीज प्रमाणीकरण मानक पूरे करता रहेगा यानि रिवैलीडेशन करवाने की कोई सीमा नहीं है।
1. भारतीय न्यूनतम बीज प्रमाणीकरण मानक- 1988: भारतीय न्यूनतम बीज प्रमाणीकरण मानक 2013 से पहले 1988 में बनाए गये वे भी हॅू-ब-हॅू है। रिवेलीडेशन मात्र भौतिक शुद्धता अंकुरण तथा कीटोपद्यात (Imsect Damage) के लिए होगा। यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि भौतिक शुद्धता में Pure Seed, Other Seed, Weed Seed तथा Inert Matter आते हैं और राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्थाओं द्वारा रोग ग्रस्त बीज के आधार पर रिवैलीडेशन में लॉट रिजैक्ट नहीं किया जा सकता। न्यूनतम मानक 1988 के अनुसार रिवैलीडेशन करवाने की कोई सीमा नहीं थी जब तक बीज प्रमाणीकरण मानकों को पूरा करता रहेगा।
2. रिवैलीडेशन में निरन्तरता : उपरोक्त दोनों न्यूनतम प्रमाणीकरण मानकों में रिवैलीडेशन करवाने की कोई सीमा नहीं है परन्तु रिवैलीडेशन बीज का प्रथम 9 माह का जीवन काल खत्म होने के एक माह पूर्व रिवैलीडेशन की प्रक्रिया की शुरूआत कर देनी चाहिए अर्थात बीज के 9 माह के बाद गैप नहीं होना चाहिए बल्कि निरन्तरता बनी रहनी चाहिए। अन्य खाद्य पदार्थों की बिक्री निरन्तर रहती है। अतः उनकी Validity निरंतरता लिए हो जबकि बीजों की बिक्री बिजाई सीजन पर ही होती है इसलिए भारत सरकार ने एक परिपत्र 18-17/88-SD-IV दिनांक 11/ 14.08.1989 को जारी किया और बीजों के रिवैलीडेशन की निरन्तरता को हटा दिया गया।
Bu hikaye Modern Kheti - Hindi dergisinin 15th November 2022 sayısından alınmıştır.
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सब्जियों की जैविक खेती
सब्जियों की जैविक खेती हमारे देश में हरित क्रांति के अंतर्गत सिंचाई के संसाधनों के विकास, उन्नतशील किस्मों और रासायनिक उर्वरकों एवं कृषि रक्षा रसायनों के उपयोग से फसलों के उत्पादन में काफी बढ़ोतरी हुई। लेकिन समय बीतने के साथ फसलों की उत्पादकता में स्थिरता या गिरावट आने लगी है। इसका प्रमुख कारण भूमि की उर्वराशक्ति में ह्रास होना है।
किसानों के लिए पैसे बचाने का महत्व एवं बचत के आसान सुझाव
किसानों के लिए बचत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन्हें आर्थिक सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करती है। खेती एक जोखिम पूर्ण व्यवसाय है जिसमें मौसम, फसल की बीमारी और बाजार के उतार-चढ़ाव जैसी कई अनिश्चितताएं शामिल होती हैं।
उर्द व मूंग में एकीकृत रोग प्रबंधन
दलहनी फसलों में उर्द व मूंग का प्रमुख स्थान है। जायद में समय से बुवाई व सघन पद्धतियों को अपनाकर खेती करने से इन फसलों की अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। जायद में पीला मौजेक रोग का प्रकोप भी कम होता है।
ढींगरी खुम्ब उत्पादन : एक लाभकारी व्यवसाय
खुम्बी एक पौष्टिक आहार है जिसमें प्रोटीन, खनिज लवण तथा विटामिन जैसे पोषक पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। खुम्बी में वसा की मात्रा कम होने के कारण यह हृदय रोगियों तथा कार्बोहाईड्रेट की कम मात्रा होने के कारण मधुमेह के रोगियों के लिए अच्छा आहार है। खुम्बी एक प्रकार की फफूंद होती है। इसमें क्लोरोफिल नहीं होता और इसको सीधी धूप की भी जरूरत नहीं होती बल्कि इसे बारिश और धूप से बचाकर किसी मकान या झोंपड़ी की छत के नीचे उगाया जाता है जिसमें हवा का उचित आगमन हो।
वित्तीय साक्षरता को उत्साहित करने में सोशल मीडिया की भूमिका
आधुनिक डिजिटल प्रौद्योगिकी का पूरी तरह से प्रयोग करना एवं भविष्य में वित्तीय सुरक्षा को यकीनन बनाने के लिए, प्रत्येक के लिए वित्तीय साक्षरता आवश्यक है। यह यकीनन बनाने के लिए कि आपका वित्त आपके विरुद्ध काम करने की बजाये आपके लिए काम करती है, ज्ञान एवं कुशलता की एक टूलकिट्ट की जरूरत होती है।
मेथी की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक
मेथी (Fenugreek) की खेती पूरे भारत में की जाती है। इसका सब्जी में केवल पत्तियों का प्रयोग किया जा सकता है। इसके साथ ही बीजों का प्रयोग मसाले के रूप में किया जाता है।
जैविक खादों का प्रयोग बढ़ायें
भूमि से अधिक पैदावार लेने के लिए उपजाऊ शक्ति को बनाये रखना बहुत जरूरी है। वर्ष 2025 में 30 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन के लिए लगभग 45 मिलियन टन उर्वरकों की जरूरत होगी, लेकिन एक अन्दाज के अनुसार वर्ष 2025 में 35 मिलियन टन उर्वरकों का प्रयोग किया जायेगा।
गेंदे की वैज्ञानिक खेती से लाभ
गेंदा बहुत ही उपयोगी एवं आसानी से उगाया जाने वाला फूलों का पौधा है। यह मुख्य रूप से सजावटी फसल है। यह खुले फूल, माला एवं भू-दृश्य के लिए उगाया जाता है।
विनाशकारी खरपतवार गाजरघास की रोकथाम
अवांछित पौधे जो बिना बोये ही उग जाते हैं और लाभ की तुलना में ज्यादा हानिकारक होते हैं वो खरपतवार होते हैं। खरपतवार प्राचीन काल से ही मनुष्य के लिये समस्या बने हुये हैं, खेतों में उगने पर यह फसल की पैदावार व गुणवत्ता पर विपरीत असर डालते हैं।
खेती में बुलंदियों की ओर बढ़ने वाला युवक किसान - नितिन सिंह
उत्तर प्रदेश का एग्रीकल्चर सैक्टर काफी तेजी से ग्रो कर रहा है। इस सैक्टर को लेकर सबसे खास बात यह है कि देश के युवा भी इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं। इसी क्रम में हम आपको यूपी के सीतापुर के रहने वाले एक ऐसे युवक की कहानी बताने जा रहे हैं, जो लाखों युवा किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गए हैं।