पोस्ट हार्वेस्टिंग नुक्सान को समझने की आवश्यकता
Modern Kheti - Hindi|1st July 2023
विकासशील देशों में खाद्य पदार्थ की बर्बादी अधिकतर कृषि उत्पादन के समय होती है। जबकि दर्मियाने एवं अधिक आमदनी वाले देशों में यह नुकसान मंडीकरण के समय अधिक होता है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में प्रत्येक वर्ष जितना खाद्य पदार्थ व्यर्थ हो जाता है, यदि उस पर नियंत्रण कर लिया जाये तो इससे देश की कुल आबादी को वर्ष में 365 दिनों तक भोजन उपलब्ध करवाया जा सकता है।
डॉ. मिनी गोयल
पोस्ट हार्वेस्टिंग नुक्सान को समझने की आवश्यकता

देश में आजादी के बाद अनाज की पैदावार बढ़ाने पर बहुत जोर दिया गया ताकि इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को प्राप्त किया जा सके। अधिक उत्पादन देने वाली किस्में एवं संशोधित बीज, नई तकनीक, रासायनिक खादें, कीटनाशक, सिंचाई के स्रोत इत्यादि का प्रयोग एवं किसानों का कठिन परिश्रम एवं सरकार की सकारात्मक नीतियों के कारण 60 के दशक में हरित क्रांति आई और देश अनाज के क्षेत्र में स्वैः निर्भर हो गया। इस समय हमारे देश के कुल घरेलू उत्पादन में कृषि क्षेत्र का लगभग 14 प्रतिशत योगदान है और देश की लगभग 60 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर करती है। यही नहीं बल्कि देश के कुल निर्यात में भी लगभग 12 प्रतिशत हिस्सा कृषि क्षेत्र की वस्तुओं का है। स्टैपल फूड के तौर पर प्रयोग की जाने वाली दो फसलें गेहूं एवं चावल की भारत में 2015-16 में पैदावार क्रमवार 94040 हजार टन एवं 103372 हजार टन रही। इसके बावजूद भी इंडिया हैल्थ रिपोर्ट 2015 के अनुसार हमारे देश में पांच वर्ष से कम आयु वाले करीब 17 मिलियन बच्चे भूखमरी का शिकार हैं। बच्चा पैदा करने योग्य आयु की लगभग 48 प्रतिशत महिलाएं एवं पांच वर्ष से नीचे की आयु के 75 प्रतिशत बच्चे अनीमक हैं। विश्व भूख सूचक आंकड़े (ग्लोबल हंगर इंडैक्स) 2016 की रिपोर्ट के अनुसार कुल 118 देशों में भारत का 97वां स्थान है जो कि देश में भूख की गंभीर स्थिति को दर्शाता है। दूसरी तरफ यह भी सच्चाई है कि विश्व में मानव खपत के लिए उत्पादित लगभग 1.3 बिलियन टन खाद्य आहार प्रत्येक वर्ष नष्ट होता है। इस तरह प्रत्येक वर्ष लगभग 1.4 बिलियन हैक्टेयर भूमि अर्थात विश्व का 28 प्रतिशत कृषि क्षेत्रफल उन खाद्य पदार्थों के उत्पादन में प्रयोग किया जाता है जो कि व्यर्थ हो जाता है। आर्थिक तौर पर यह नुक्सान प्रत्येक वर्ष करीब 750 बिलियन डॉलर का है। इतना ही नहीं, इस बर्बादी से पैदा कार्बन की मात्रा 3.3 बिलियन टन प्रति वर्ष है जो आसपास प्रदूषण फैलाती है।

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कृषि में डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त करने वाली 'मिलेट क्वीन' - रायमती घुरिया
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कृषि में डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त करने वाली 'मिलेट क्वीन' - रायमती घुरिया

ओडिशा के कोरापुट जिले की 36 वर्षीय आदिवासी महिला किसान रायमती घुरिया को कृषि क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है।

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