परिचय: चावल-गेहूं का चक्रीकरण देश में खाद्य सुरक्षा बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फिर भी, कृषि उत्पादन के दौरान कुछ मुद्दे सामने आ रहे हैं। एक यह है कि लंबे समय तक संरक्षण जुताई के परिणामस्वरूप उथली और कड़ी जुताई होती है। दूसरी बात यह है कि दोनों फसलों के बीच सीमित फसल चक्र अंतराल में भारी मात्रा में पराल का सफलतापूर्वक प्रबंधन करना मुश्किल है। समय के साथ इस फसल चक्र में पैदावार बढ़ी है, लेकिन रिपोर्ट बताती है कि कारक उत्पादकता घट सकती है। चावल-गेहूँ फसल प्रणाली उच्च सघनता के लिए जानी जाती है। चावल-गेहूं की फसल प्रणाली में हरा चारा आसानी से उपलब्ध है और यह बदले में बड़ी पशुधन आबादी का समर्थन करने का काम करता है। इस तरह, चावल-गेहूं का फसल चक्र खाद्य सुरक्षा का मुख्य आधार रहा है और न केवल भारत में बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में सबसे व्यापक रूप से प्रचलित है।
धान की सीधी बिजाई नर्सरी से रोपाई के बजाये खेत में बोए गए बीजों से चावल की फसल की स्थापना की प्रक्रिया को संदर्भित करती है। प्रणाली किसानों के अनुकूल साबित हुई है लेकिन उच्च लाभ प्राप्त करने के लिए तकनीकी दृष्टिकोण में और वृद्धि की आवश्यकता है।
हालांकि, लंबे समय तक चावल और गेहूं के उत्पादन से प्राकृतिक संसाधनों (भूजल, मिट्टी) का काफी हद तक क्षरण हुआ है। इसलिए, मिट्टी से आवश्यक पोषक तत्वों के अत्याधिक दोहन के कारण चावल-गेहूं प्रणाली की स्थिरता प्रभावित होती है, भूजल स्तर में गिरावट लंबे समय तक सिस्टम अपनाने के कारण रोग/कीट का उभरनाय चावल की पोखर आदि के कारण मिट्टी में गड़बड़ी। पानी की अपर्याप्तता, चावल की खेती की जल- गहन प्रकृति और बढ़ती श्रम लागत चावल उत्पादन में जल उत्पादकता बढ़ाने के लिए वैकल्पिक प्रबंधन दृष्टिकोण की खोज को प्रेरित करती है।
Bu hikaye Modern Kheti - Hindi dergisinin 1st July 2023 sayısından alınmıştır.
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मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए कारगर है कृषि वानिकी
जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से
साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'
भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
कृषि विकास का राह सहकारिता
भारत को 2028 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का इरादा है और इसमें जिन तत्वों और सैक्टर के योगदान की जरुरत पड़ेगी, उनमें एक है सहकारिता क्षेत्र।
मधुमक्खियां भी हो रही हैं प्रभावित हवा प्रदूषण से
सर्दियों का मौसम आते ही देश के कई हिस्से प्रदूषण की आगोश में समा गए हैं, खासकर देश की राजधानी दिल्ली जहां सांसों का आपातकाल लगा हुआ है।
ज्वार की रोग एवं कीट प्रतिरोधी नई किस्म विकसित
भारत श्री अन्न या मोटे अनाज का प्रमुख उत्पादक है और निर्यात के मामले में भी हमारा देश दूसरे पायदान पर है।
खरपतवारों के कारण होता है फसली नुकसान
खरपतवार प्रबंधन पर एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल भारत में फसल उत्पादन में करीब 192,202 करोड़ रुपये का नुकसान खरपतवारों के कारण होता है।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।