राष्ट्र में खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए गेहूं की फसल का अत्याधिक महत्व है। गेहूं की मूल्य श्रृंखला जटिल है और विभिन्न मुद्दों से जुड़ी हुई है। गेहूं की फसल के महत्व को देखते हुए भारत में गेहूं की मूल्य श्रृंखला का अध्ययन करने और इसकी मुख्य विशेषताओं एवं इसमें शामिल प्रक्रियाओं और गेहूं मूल्य श्रृंखला के विभिन्न चरणों में आने वाली प्रमुख बाधाओं की पहचान करने की आवश्यकता है। गेहूं क्षेत्र के सामने आने वाली सबसे आम चुनौतियों में शामिल हैं: पानी की मात्रा और गुणवत्ता के मुद्दे, कीटनाशकों और उर्वरकों का अनुचित और अत्याधिक उपयोग: जैव विविधता का ह्रासः अपर्याप्त प्राथमिक प्रसंस्करण सुविधाएंय भंडारण और परिवहन बुनियादी ढांचे की कमी: बाजार सूचना
प्रणाली तक पहुंच का अभाव: मूल्य में अस्थिरता और बाजार अनिश्चितताय छोटे किसानों को कम आय प्राप्त होती है। लेख में गेहूं मूल्य श्रृंखला की ताकत, कमजोरियों, अवसरों और खतरों को उजागर करने का भी प्रयास किया गया है और पहचाने गए मुद्दों को दूर करने और गेहूं मूल्य श्रृंखला को मजबूत करने के लिए कुछ रणनीतियों का सुझाव दिया गया है।
मुख्य शब्द: गेहूं, मूल्य श्रृंखला, मूल्य श्रृंखला मानचित्रण, एसडब्ल्यूओटी विश्लेषण
परिचय: भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है, जो समावेशी विकास को बढ़ावा देने, किसानों की आजीविका बढ़ाने और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में भी सहायक है। किसानों और अन्य हितधारकों की आय बढ़ाने के लिए वर्तमान समय में मूल्य श्रृंखला विश्लेषण का महत्व बढ़ रहा है। मूल्य श्रृंखला की अवधारणा की शुरुआत माइकल पोर्टर ने अपनी पुस्तक 'कॉम्पिटिटिव एडवांटेज: क्रिएटिंग एंड सस्टेनिंग सुपीरियर परफॉर्मेंस' (पोर्टर, 1985) में की थी। कपलिंस्की और मॉरिस (2000) ने मूल्य श्रृंखला को उत्पादन के विभिन्न अंतिम चरणों (भौतिक परिवर्तन और विभिन्न उत्पादक सेवाओं के इनपुट के संयोजन सहित), तक वितरण के माध्यम से किसी उत्पाद या सेवा को उपभोक्ताओं और उपयोग के बाद अंतिम निपटान की अवधारणा से लाने के लिए आवश्यक गतिविधियों की पूरी श्रृंखला के रूप में परिभाषित किया है।
Bu hikaye Modern Kheti - Hindi dergisinin December 01, 2023 sayısından alınmıştır.
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मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए कारगर है कृषि वानिकी
जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से
साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'
भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
कृषि विकास का राह सहकारिता
भारत को 2028 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का इरादा है और इसमें जिन तत्वों और सैक्टर के योगदान की जरुरत पड़ेगी, उनमें एक है सहकारिता क्षेत्र।
मधुमक्खियां भी हो रही हैं प्रभावित हवा प्रदूषण से
सर्दियों का मौसम आते ही देश के कई हिस्से प्रदूषण की आगोश में समा गए हैं, खासकर देश की राजधानी दिल्ली जहां सांसों का आपातकाल लगा हुआ है।
ज्वार की रोग एवं कीट प्रतिरोधी नई किस्म विकसित
भारत श्री अन्न या मोटे अनाज का प्रमुख उत्पादक है और निर्यात के मामले में भी हमारा देश दूसरे पायदान पर है।
खरपतवारों के कारण होता है फसली नुकसान
खरपतवार प्रबंधन पर एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल भारत में फसल उत्पादन में करीब 192,202 करोड़ रुपये का नुकसान खरपतवारों के कारण होता है।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।