अंगूर के पौधों में काट-छांट का उत्पादन पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है। उत्तर भारत में अंगूर की बेलों की कटाई-छंटाई दिसम्बर से जनवरी में की जाती है। बेलों का ढांचा और फलोत्पादन काट-छांट पर ही निर्भर करता है। प्रथम 2 से 3 वर्षों तक बेलों में काट-छांट सधाई प्रणाली के अनुसार ढांचा के तैयार करने हेतु की जाती है। काट-छांट से अंगूर बेलों की वृद्धि एवं उत्पादन क्षमता का आधार समीप एवं नियमित बना रहता है।
इसमें अंगूर के पुराने परिपक्व प्ररोहों (केन) को छांट दिया जाता है, तथा अधिक पुरानी शाखाओं को किनारे तक काटते हैं, जिससे उन पर नई टहनियां और नए प्ररोह विकसित हो जाएं। फलोत्पादन के लिए एक वर्ष के परिपक्व प्ररोहों को छांटते हैं, जिससे नये प्ररोह निकलते हैं और उन पर पुष्प गुच्छे विकसित होते हैं। अगले वर्ष जब नए प्ररोह पुराने हो जाते हैं, और बेलों में काफी भार हो जाता है तो उन्हें छंटाई की आवश्यकता होती हैं।
इसलिए बेलों की प्रत्येक वर्ष काट-छांट अति आवश्यक सस्य क्रिया है। अंगूर में फल-उत्पादन प्रत्यक्ष रूप से केन की संख्या से संबंधित होता है। लेकिन बेल की ओज क्षमता का सम्बंध इसके विपरीत है। इसलिए छंटाई के समय कितनी संख्या में केन रखे जायें और कितना फलन होने दिया जाए, यह उत्तम छंटाई, किस्म और सधाई प्रणाली पर निर्भर करता है। अंगूर में काट-छांट के मुख्यतः निम्नलिखित उद्देश्य हैं, जैसे-
1. पोषक रसों का बहाव फलोत्पादन क्षेत्र की ओर मोड़ना अथवा बदलना।
2. बेलों के आकार या ढांचे को ऐसी दशा में रखना कि उनका प्रबंध आसानी से किया जा सके।
3. बेलों से प्रत्येक वर्ष नियमित रूप से अधिक उत्पादन के साथ उत्तम गुणों वाले फल प्राप्त करना।
अंगूर के पौधों की सधाई तकनीक
अंगूर की बागवानी में बेलों की सधाई का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। अंगूर की बेलों के बीच का फासला भी इसी बात पर निर्भर करता है, कि उनकी सधाई किस प्रणाली से की जाए। सधाई के मुख्यतः दो महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं, जैसे-
1. अंगूर की बेलों के ढांचे को अस्थाई रूप से सहारा देना।
2. पर्याप्त फलोत्पादन क्षेत्र उपलब्ध कराना एवं साधे रखना।
Bu hikaye Modern Kheti - Hindi dergisinin 15th February 2024 sayısından alınmıştır.
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मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
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