स्वैः रोजगार का मार्ग सर्टीफाईड सीड उत्पादन
Modern Kheti - Hindi|15th May 2024
कृषि उत्पादकता में बीज की गुणवत्ता विशेष भूमिका अदा करती है। कृषि उत्पादन में वृद्धि करने के लिए अन्य कारकों के मुकाबले बीज का महत्व कहीं अधिक होता है। दीर्घकाल से कृषि में बढ़ोतरी एवं विकास के लिए बेहतर टैक्नॉलोजी एवं प्रसार अत्यंत आवश्यक है। आमतौर पर यह टैक्नॉलोजी बीज द्वारा खेतों तक पहुंचाई जाती है। 1960 के दशक में हरित क्रांति की लहर का बड़ा कारण नये बीजों की खोज एवं प्रसार को माना जाता है।
सतिन्दरपाल सिंह बराड़, तरविन्दरपाल सिंह
स्वैः रोजगार का मार्ग सर्टीफाईड सीड उत्पादन

कृषि को भारतीय अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी माना गया है। कृषि उत्पादकता में बीज की गुणवत्ता विशेष भूमिका अदा करती है। कृषि उत्पादन में वृद्धि करने के लिए अन्य कारकों के मुकाबले बीज का महत्व कहीं अधिक होता है। दीर्घकाल से कृषि में बढ़ोतरी एवं विकास के लिए बेहतर टैक्नॉलोजी एवं प्रसार अत्यंत आवश्यक है। आमतौर पर यह टैक्नॉलोजी बीज द्वारा खेतों तक पहुंचाई जाती है। 1960 के दशक में हरित क्रांति की लहर का बड़ा कारण नये बीजों की खोज एवं प्रसार को माना जाता है। 1950-51 से लेकर 2012-13 तक भारत में अन्न पैदावार में लगभग पांच गुना वृद्धि हुई है। इस वृद्धि का मुख्य कारण उत्पादन में इजाफे को माना जाता है क्योंकि इस समय दौरान खेती अधीन भूमि में वृद्धि सिर्फ 28 प्रतिशत ही हुई है। जबकि इस समय दौरान उत्पादन में चार गुना (300 प्रतिशत) वृद्धि रिकॉर्ड की गई है। उत्पादन में वृद्धि का मुख्य कारण नई टैक्नॉलोजी है और इस नई टैक्नॉलोजी में बीज टैक्नॉलोजी को विशेष स्थान प्राप्त है।

आओ सबसे पहले भारतीय बीज उद्योग एवं प्रणाली की पृष्ठभूमि पर दृष्टि डालें। भारत में बीज उद्योग के विकास को मुख्य तौर पर तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है। शुरुआती दौर में भारतीय बीज उद्योग पर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का बोलबाला रहा। 1960-1980 के दशकों तक निजी क्षेत्र की बीज कंपनियों की देन लगभग नामात्र थी। शुरुआती दौर में नियमों एवं कानून संबंधी अड़चनों के कारण बीज उद्योग की प्रफुल्लता की संभावनाओं पर प्रभाव पड़ा। गिने-चुने सब्जी बीजों के आयात को छोड़ कर बीज आयात पर पाबंदी लगी रही।

भारतीय बीज उद्योग की पिछोकड़ के मुख्य पहलू

* नेशनल सीड कार्पोरेशन का गठन (1963)

* सीड एक्ट, 1966

* स्टेट फार्मर्ज़ कार्पोरेशन ऑफ इंडिया का गठन (1969)

* नेशनल सीड प्रोजैक्टस

* नेशनल सीड पॉलिसी, 1988

* नेशनल सीड पॉलिसी, 2002

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गोभीवर्गीय सब्जियों के रोग और उनकी रोकथाम
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गोभीवर्गीय सब्जियों के रोग और उनकी रोकथाम

सर्दी में गोभीवर्गीय सब्जियों (फूलगोभी, बंदगोभी व गांठगोभी) का बहुत महत्व है क्योंकि सर्दी में सब्जियों के आधे क्षेत्रफल में यही सब्जियां बोई जाती हैं। इन सब्जियों को कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोर्स, विटामिन ए एवं सी इत्यादि का अच्छा स्रोत माना जाता है।

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15th December 2024
हाई-टेक पॉलीहाउस खेती में अधिक उत्पादन के लिए कंप्यूटर की भूमिका
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हाई-टेक पॉलीहाउस खेती में अधिक उत्पादन के लिए कंप्यूटर की भूमिका

भारत देश में आज के समय जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है जिससे रहने के लिए लगातार कृषि योग्य भूमि का उपयोग कारखाने लगाने, मकान बनाने में हो रहा है। कृषि योग्य भूमि कम होने से जनसंख्या का भेट भरने की समस्या से बचने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं चला रखी हैं जिससे किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें।

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15th December 2024
सरसों की खेती अधिक उपज के लिए उन्नत शस्य पद्धतियाँ
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सरसों की खेती अधिक उपज के लिए उन्नत शस्य पद्धतियाँ

सरसों (Brassica spp.) एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जो पोषण और व्यवसायिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत में सरसों का उपयोग मुख्यतः खाद्य तेल, मसाले और औषधि के रूप में किया जाता है।

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15th December 2024
गेहूं में सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व
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गेहूं में सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व

गेहूं में मुख्य पोषक तत्वों का संतुलित प्रयोग अति आवश्यक है। प्रायः किसान भाई उर्वरकों में डी.ए.पी. व यूरिया का अधिक प्रयोग करते हैं और पोटाश का बहुत कम प्रयोग करते हैं।

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15th December 2024
पॉलीटनल में सब्जी पौध तैयार करना
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पॉलीटनल में सब्जी पौध तैयार करना

देश में व्यवसायिक सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने में सब्जियों की स्वस्थ पौध उत्पादन एक महत्वपूर्ण विषय है जिस पर आमतौर से किसान कम ध्यान देते हैं।

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15th December 2024
क्या है मनरेगा की कृषि में भागेदारी?
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क्या है मनरेगा की कृषि में भागेदारी?

ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से कमियां पूरी करें और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए संबंधित विभागों से कनवरजैंस के लिए जोर दिया जाता है। जैसे खेतीबाड़ी, बागवानी, वानिकी, जल संसाधन, सिंचाई, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, नेशनल रूरल लिवलीहुड मिशन और अन्य प्रोग्रामों के सहयोग से जो कि मनरेगा अधीन निर्माण की संपति की क्वालिटी को सुधारना और टिकाऊ बनाया जा सके।

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15th December 2024
अलसी की फसल के कीट व रोग एवं उनका नियंत्रण
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अलसी की फसल के कीट व रोग एवं उनका नियंत्रण

अलसी की फसल को विभिन्न प्रकार के रोग जैसे गेरुआ, उकठा, चूर्णिल आसिता तथा आल्टरनेरिया अंगमारी एवं कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्धकुण्डलक इल्ली चने की इल्ली द्वारा भारी क्षति पहुंचाई जाती है जिससे अलसी की फसल के उत्पादन में भरी कमी आती है।

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15th December 2024
मटर की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें
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मटर की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें

अच्छी उपज के लिए मटर की फसल के कीट एवं रोग की रोकथाम जरुरी है। मटर की फसल को मुख्य रोग जैसे चूर्णसिता, एसकोकाईटा ब्लाईट, विल्ट, बैक्टीरियल ब्लाईट और भूरा रोग आदि हानी पहुचाते हैं।

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15th December 2024
कृषि-वानिकी और वनों व वृक्षों का धार्मिक एवं पर्यावरणीय महत्व
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कृषि-वानिकी और वनों व वृक्षों का धार्मिक एवं पर्यावरणीय महत्व

कृषि-वानिकी : कृषि वानिकी भू-उपयोग की वह पद्धति है जिसके अंतर्गत सामाजिक तथा पारिस्थितिकीय रुप से उचित वनस्पतियों के साथ-साथ कृषि फसलों या पशुओं को लगातार या क्रमबद्ध ढंग से शामिल किया जाता है। कृषि वानिकी में खेती योग्य भूमि पर फसलों के साथ-साथ वृक्षों को भी उगाया जाता है। इस प्रणाली द्वारा उत्पाद के रुप में ईंधन की लकड़ी, हरा चारा, अन्न, मौसमी फल इत्यादि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस प्रणाली को अपनाने से भूमि की उपयोगिता बढ़ जाती है।

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15th December 2024
'रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया' अवार्ड प्राप्त करने वाली सफल महिला किसान-नीतुबेन पटेल
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'रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया' अवार्ड प्राप्त करने वाली सफल महिला किसान-नीतुबेन पटेल

नीतूबेन पटेल ने जैविक कृषि में उत्कृष्ट योगदान देकर \"सजीवन\" नामक फार्म की स्थापना की, जो 10,000 एकड़ में 250 जैविक उत्पाद उगाता है। उन्होंने 5,000 किसानों और महिलाओं को प्रशिक्षित कर जैविक खेती में प्रेरित किया।

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15th December 2024