देश के शुष्क तथा अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में यह प्रमुख खाद्य है और साथ ही पशुओं के पौष्टिक चारा उत्पादन के लिए भी बाजरे की खेती की जाती है। पोषण की दृष्टि से जहां इसके दाने में अपेक्षाकृत अधिक प्रोटीन (10.5 से 14.5 प्रतिशत) और वसा (4 से 8 प्रतिशत) मिलती है, वहीं कार्बोहाइड्रेट, खनिज तत्व, कैल्शियम, केरोटिन, राइबोफ्लेविन (विटामिन बी-2) और नायसिन (विटामिन बी-6) भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
गेहूं एवं चावल की अपेक्षा बाजरे में लौह तत्व भी अधिक होता है। अधिक ऊर्जा होने के कारण बाजरे को सर्दियों के मौसम में खाने में अधिक प्रयोग किया जाता है। बाजरा के चारे में प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस और खनिज लवण उपयुक्त मात्रा में एवं हाइड्रोरासायनिक अम्ल सुरक्षित मात्रा में पाया जाता है। भारत के कुल बाजरा क्षेत्र का लगभग 95 प्रतिशत असिंचित है, जिससे मानसून की अनिश्चितता की तरह बाजरा की उत्पादकता में भी उतार-चढ़ाव रहता है।
इसके अतिरिक्त, कुछ रोगों और कीटों का प्रकोप एवं वैज्ञानिक तरीके से फसल प्रबंधन नहीं होने से भी इस फसल की पैदावार अन्य खरीफ की अनाज वाली फसलों की तुलना में कम हो जाती है। परन्तु यदि सही किस्म का चुनाव और खेती के लिए उन्नत सस्य तथा पौध संरक्षण तकनीकियां अपनाई जाएं तो बाजरा की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि की जा सकती है। इस लेख में बाजरे से जुड़ी खेती की हर जानकारी का उल्लेख है।
बाजरे की खेती के लिए भूमि और जलवायु
भूमि- बाजरे की फसल अच्छी जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में ली जा सकती है। परन्तु बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए सर्वोत्तम है। बाजरे के लिए भारी भूमि कम अनुकूल रहती है और इसके लिए अधिक उपजाऊ भूमियों की आवश्यकता नहीं होती है।
जलवायु- बाजरे की खेती गर्म जलवायु और 400 से 600 मिलीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में भली-भांति की जा सकती है। 32 से 37 सेल्सियस तापमान बाजरे के लिए उपयुक्त माना गया है। यदि पुष्पन अवस्था में वर्षा हो जाए या फव्वरों से सिंचाई कर दी जाए तो फूल धुल जाने के कारण बाजरे में दानों का भराव कम हो जाता है। बालियों में दाना भरने की अवस्था में यदि नमी अधिक हो और तापमान कम हो तो अर्गट रोग के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है।
Bu hikaye Modern Kheti - Hindi dergisinin 15th July 2024 sayısından alınmıştır.
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मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए कारगर है कृषि वानिकी
जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से
साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'
भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
कृषि विकास का राह सहकारिता
भारत को 2028 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का इरादा है और इसमें जिन तत्वों और सैक्टर के योगदान की जरुरत पड़ेगी, उनमें एक है सहकारिता क्षेत्र।
मधुमक्खियां भी हो रही हैं प्रभावित हवा प्रदूषण से
सर्दियों का मौसम आते ही देश के कई हिस्से प्रदूषण की आगोश में समा गए हैं, खासकर देश की राजधानी दिल्ली जहां सांसों का आपातकाल लगा हुआ है।
ज्वार की रोग एवं कीट प्रतिरोधी नई किस्म विकसित
भारत श्री अन्न या मोटे अनाज का प्रमुख उत्पादक है और निर्यात के मामले में भी हमारा देश दूसरे पायदान पर है।
खरपतवारों के कारण होता है फसली नुकसान
खरपतवार प्रबंधन पर एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल भारत में फसल उत्पादन में करीब 192,202 करोड़ रुपये का नुकसान खरपतवारों के कारण होता है।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।