विनाशकारी खरपतवार गाजरघास की रोकथाम
Modern Kheti - Hindi|1st September 2024
अवांछित पौधे जो बिना बोये ही उग जाते हैं और लाभ की तुलना में ज्यादा हानिकारक होते हैं वो खरपतवार होते हैं। खरपतवार प्राचीन काल से ही मनुष्य के लिये समस्या बने हुये हैं, खेतों में उगने पर यह फसल की पैदावार व गुणवत्ता पर विपरीत असर डालते हैं।
विरेन्द्र सिंह हुड्डा, मीनाक्षी सांगवान, सुरेश व टोडरमल सस्य विज्ञान विभाग, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार, हरियाणा
विनाशकारी खरपतवार गाजरघास की रोकथाम

मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी खरपतवार बहुत बुरा असर डालते हैं और कई खरपतवारों की वजह से (जैसे गाजरघास) मनुष्य को कई घातक बीमारियों का सामना करना पड़ता है।

गाजरघास क्या है :- गाजर के पौधे के समान दिखने वाली वनस्पति गाजरघास एक उष्णकटिबंधीय अमेरीकी मूल का शाकीय पौधा है जो आज देश के समस्त क्षेत्रों में मानव, पशु, पर्यावरण और जैव विविधितता हेतु एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। चूंकि पौधे की पत्तियां गाजर की पत्तियों के समान होती हैं। इसलिए इसे गाजरघास के नाम से जाना जाता है।

गाजरघास बहुत ही खतरनाक खरपतवार है। गाजरघास की 20 प्रजातियां पूरे विश्व में पाई जाती हैं। इसका वैज्ञानिक नाम पारथेनियम हिस्ट्रोफोरस (Parthenium hysterophorus) है, इसको कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। जैसे काग्रेंस घास, सफेद टोपी, छंतक चांदनी आदि। यह खरपतवार एस्टेरेसी (कम्पोजिटी) (Family: Asteraceae) कुल का पौधा है।

भारत में सर्वप्रथम यह घास 1955 में पूना (महाराष्ट्र) में देखी गई थी। माना जाता है कि हमारे देश में इसका प्रवेश 1955 में अमेरिका व कनाडा से आयातित गेहूं के साथ हुआ। आज ये घातक खरपतवार पूरे भारत वर्ष में लाखों हैक्टेयर भूमि पर फैल चुका है। यह खरपतवार जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के विभिन्न भागों में फैला हुआ है। खरपतवार विज्ञान अनुसंधान निदेशालय जबलपुर द्वारा किये गए आंकलन के अनुसार भारत में गाजरघास लगभग 350 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में फैल चुकी है जिसका समय रहते उन्मूलन नहीं किया गया तो गाजरघास देश के लिए नाशूर बन सकती है। यह घास मुख्यतः खुले स्थानों, औद्योगिक क्षेत्रों, सड़कों के किनारे, नहरों के किनारे व जंगलों में बहुतायात में पाया जाता है। अब इसने अपने पाँव खेत खलियानों में भी पसारना शुरू कर दिया है। विश्व में गाजरघास भारत के अलावा अमेरिका, मैक्सिको, वेस्टइण्डीज, नेपाल, चीन, वियतनाम तथा आस्ट्रेलिया के विभिन्न भागों में भी फैला हुआ है।

गाजरघास की पहचान :

Bu hikaye Modern Kheti - Hindi dergisinin 1st September 2024 sayısından alınmıştır.

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कृषि-वानिकी : कृषि वानिकी भू-उपयोग की वह पद्धति है जिसके अंतर्गत सामाजिक तथा पारिस्थितिकीय रुप से उचित वनस्पतियों के साथ-साथ कृषि फसलों या पशुओं को लगातार या क्रमबद्ध ढंग से शामिल किया जाता है। कृषि वानिकी में खेती योग्य भूमि पर फसलों के साथ-साथ वृक्षों को भी उगाया जाता है। इस प्रणाली द्वारा उत्पाद के रुप में ईंधन की लकड़ी, हरा चारा, अन्न, मौसमी फल इत्यादि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस प्रणाली को अपनाने से भूमि की उपयोगिता बढ़ जाती है।

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'रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया' अवार्ड प्राप्त करने वाली सफल महिला किसान-नीतुबेन पटेल
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नीतूबेन पटेल ने जैविक कृषि में उत्कृष्ट योगदान देकर \"सजीवन\" नामक फार्म की स्थापना की, जो 10,000 एकड़ में 250 जैविक उत्पाद उगाता है। उन्होंने 5,000 किसानों और महिलाओं को प्रशिक्षित कर जैविक खेती में प्रेरित किया।

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