कार्तिक की दीवाली
Champak - Hindi|October Second 2022
बच्चों की कहानी - कार्तिक की दीवाली
कुसुम अग्रवाल
कार्तिक की दीवाली

कार्तिक को हौस्टल आए कुछ ही दिन हुए थे, लेकिन अभी भी वह बेचैन था. उसे रहरह कर अपने घर की याद आ रही थी और उस की आंखों में अकसर आंसू आ जाते थे.

कार्तिक अपने मातापिता और छोटी बहन के साथ एक छोटे से घर में रहता था. मातापिता की प्रथम संतान और इकलौता बेटा होने के कारण उसकी हर इच्छा पूरी की जाती थी, जिस की वजह से वह थोड़ा जिद्दी हो गया था. वह अपने मातापिता का बिलकुल भी कहना नहीं मानता था और न ही अपनी छोटी बहन पारुल का ध्यान रखता था. बस, हर समय वह सब से लड़ाईझगड़ा करता रहता था. जरा सी उसकी बात नहीं मानो तो झट से गुस्सा हो जाता था और उस के गुस्से का शिकार बेचारी पारुल बनती थी.

कई बार गुस्से में कार्तिक पारुल को थप्पड़ भी मार देता था. बेचारी पारुल अकसर रोतेरोते मां के पास शिकायत ले कर जाती थी. तब मां कार्तिक को बहुत डांटती थी, लेकिन उस के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती थी.

कार्तिक की मां उसे बहुत प्यार करती थी, लेकिन वह यह नहीं चाहती थी कि कार्तिक घमंडी और बदमिजाज लड़का बने. कार्तिक के बिगड़ते स्वभाव से चितिंत हो कर उस के मम्मीपापा ने उसे हौस्टल भेजने का फैसला किया. उन्होंने यह सोच कर कि हौस्टल के अनुशासित और संयमपूर्ण जीवन से कार्तिक के स्वभाव में अवश्य परिवर्तन आएगा.

लेकिन कार्तिक हौस्टल नहीं जाना चाहता था. जब मम्मीपापा ने उसे हौस्टल भेजने की बात बताई तो उस ने रोरो कर पूरा घर सिर पर उठा लिया. उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि हौस्टल भेज कर मम्मीपापा उसे उस की शरारतों की सजा दे रहे हैं.

उस की नजर में हौस्टल किसी कैदखाने से कम नहीं था, जहां बच्चों को चारदीवारी में बंद रख पूरे दिन उन की हरकतों पर नजर रखी जाती है. 'ऐसा मत करो, वैसा मत करो.' 'यहां मत जाओ, वहां क्यों गए?' हर चीज में टोकाटाकी होती रहती है. उसे घर में मिलने वाली सुविधाओं से हाथ तो धोना ही पड़ेगा है.

Bu hikaye Champak - Hindi dergisinin October Second 2022 sayısından alınmıştır.

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