- अलग-अलग देशों में और अपने यहां भी सरकार के पास बुजुर्गों के लिए ढेर सारी योजनाएं हैं। लेकिन सवाल यह है कि बुजुर्गों के लिए क्या इतना ही काफी है?
वैसे तो भाग-दौड़ भरी दुनिया में किसी के लिए समय निकालना बहुत मुश्किल हो गया है। पढ़ाई-लिखाई और कॅरिअर की चिंता ने आज की पीढ़ी की व्यस्तता को इतना बढ़ा दिया है कि अपने परिवार के साथ बैठने का उसके पास समय नहीं बचा है। रोजी-रोटी की चिंता ने युवाओं को घर से ऐसा निकाला कि कई बार वे सिर्फ बाहर के ही होकर रह जाते हैं। वास्तव में, एकल परिवारों का चलन भी इसीलिए बढ़ा और इसका सबसे अधिक असर अगर किसी वर्ग पर पड़ा तो वे थे- परिवार के बरगद यानी घर के बुजुर्ग। संयुक्त परिवारों के ढलान ने बुजुर्गों को अकेला कर दिया। पूरा जीवन अपने घर-परिवार को देने वाले जब बुजुर्ग हुए तो उन्हें किसी का साथ नहीं मिला। उन्होंने भले अपने परिवार को पूरा वक्त दिया हो, लेकिन उन्हें कुछ समय देने को कोई तैयार नहीं दिखता। कहीं मजबूरी तो कहीं मोबाइल की धुन, कहीं जिंदगी की रेस तो कहीं आत्मकेंद्रित स्वभाव की वजह से बुजुर्गों को देखने वाला घर में कोई नहीं होता है। अलग-अलग देशों में और अपने यहां भी सरकार के पास बुजुर्गों के लिए ढेर सारी योजनाएं हैं। न्यूजीलैंड में रिटायरमेंट के बाद सरकारी मदद के तहत बुजुर्गों के लिए 'सुपर गोल्ड कार्ड' की व्यवस्था की गई है, ताकि वे बिना किसी तकलीफ के परिवहन का इस्तेमाल कर सकें और एक जगह से दूसरी जगह घूम सकें। वहीं, भारत समेत कई अन्य देशों में बुजुर्गों को सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन की सुविधा दी गई है। लेकिन क्या समय से पेंशन मिल जाना ही बुजुर्गों के लिए काफी है? घर में बैठे बुजुर्गों के लिए समय से पेंशन मिलने के अलावा परिवारवालों के समय की भी जरूरत होती है।
जहां चाह वहां राह
Bu hikaye Rupayan dergisinin April 21, 2023 sayısından alınmıştır.
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ढीला ढक्कन
“ओफ्फो श्रेया, कुछ काम तो तसल्ली से कर लिया करो। पता नहीं क्यों, हर समय जल्दबाजी में रहती हो?”श्रेया ने आवाज सुन वहीं से जानना चाहा और बोली, “अब क्या हुआ शेखर? क्या कर दिया मैंने?”
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कहीं छोटा न रह जाए!
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जेन-जी का आकर्षक स्टाइल
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नए साल में खिलें फूल की तरह!
दिन बदले। साल बदल गए। खुद को कितना बदला आपने? खुद को कितना 'नया' बनाया आपने? समय-समय पर सकारात्मक बदलाव जरूरी हैं, तभी जिंदगी में कुछ नया होता है।
सपनों की स्टीयरिंग
उस वक्त रोजगार की कोई खास समस्या नहीं थी। समस्या थी तो बस पिता के पास बैठ अपने सपने की बात करना।
पावभाजी मखनी
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तंदूरी प्याज कुलचा
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