संझा फूल जैसी गुलाबी झा दीदी किसी रंगहीन, गंधहीन पुष्प की तरह सफेद हो गयी थीं। रंग बदलने में उनका कोई दोष नहीं था। गुलाबी रंग का आलता, गुलाबी रंग की चूड़ी, गुलाबी रंग की ओढ़नी से गुजरते हुए गुलाबी रंग की साड़ी, गुलाबी रंग की लिपस्टिक, गुलाबी रंग की बिंदी - संझा दीदी को अपने हाथों की लंबी, पतली उंगलियों की तरह ही बेहद पसंद थे। उनकी अपनी दुनिया ही गुलाबी थी।
साहित्य में पढ़ा था कि प्रेम होने पर आंखों में गुलाबी डोरे तैरने लगते हैं। बीए पास संझा दीदी अपनी आंखों में भी गुलाबी डोरे खोजने की कोशिश करतीं। और जब कभी कुछ डोरे उन्हें मिल जाते, वे खुशी से गुलाबी गुलाल हो जातीं।
यह संझा दीदी के घर और इस दुनिया की बीसवीं सदी के उत्तरार्ध का जमाना था, जब लड़कियों की पढ़ाई का मतलब अच्छे घर में उनका ब्याह दिया जाना होता था, क्योंकि ये लड़के अब ऊंचे दहेज के संग पढ़ी-लिखी लड़कियों की मांग करने लगे थे।
उनकी अम्मा के समय नदिया के पार से ले कर निकाह, प्रेम रोग, चांदनी फिल्म आदि का जमाना था। अम्मा को फिल्मों से बड़ा लगाव था और इसके लिए वे बाबू जी से लड़ कर भी फिल्म देखने चली जाती थीं। बाबू जी के मना करने पर उनको धमका भी देतीं, 'बेसी रोकिएगा तो बंबई चले जाएंगे और खुदे माला सिन्हा, मुमताज आ माधुरी दीक्षित बन जाएंगे।' बाबू जी मुसका कर चले जाते और अम्मा गाने लगतीं, 'मेरे दर्जी से आज मेरी जंग हो गयी, कल चोली सिलाई आज तंग हो गयी...'
बाबू जी को धमकानेवाली अम्मा दर्जी से सिलाए अनमेल, बेडौल, झोलझालवाले कपड़े में ही संतुष्ट रहती थीं। 'एक-दो धुलाई के बाद सब ठीक हो जाता है, ' यह अम्मा का सनातन वाक्य था, जिसे उन्होंने सनातन सच की तरह आत्मसात कर लिया था। अम्मा गजब की संतोषी थीं।
संझा अलग थीं। वे अपने मन की करती थीं। इसीलिए उन्होंने अपना नाम भी बदल कर संध्या से संझा कर लिया था। अम्मा ने कहा, “शहरी नाम के देहाती कर रहल हते? " वे बोलीं, "पूरा घर त देहातिए रीति-रेवाज से भरल हऊ। पहिले ओकरा खतम कर न !"
Bu hikaye Vanitha Hindi dergisinin December 2022 sayısından alınmıştır.
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