चाइल्ड काउंसलर्स की बात को सच मानें, तो कोरोना के बाद से बच्चों में एडीएचडी यानी अटेंशन डेफिसिट हाइपर डिस्ऑर्डर के मामले बहुत बढ़ रहे हैं। आपने भी कई बार देखा होगा कि आपके बच्चे का पढ़ाई या खेल में आसानी से मन नहीं लगता। वह लंबे समय तक एक जगह टिक कर नहीं बैठ पाता। बैठे-बैठे वह हाथ-पैर हिलाता रहता है और आपकी पूरी बात सुने बिना ही जवाब दे देता है। अगर ऐसा है, तो आपका बच्चा अटेंशन डेफिसिट हाइपर डिस्ऑर्डर का शिकार है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय पर इसका इलाज नहीं होता है, तो बड़े होने पर बच्चों में मानसिक परेशानी बढ़ जाती है और वे आपराधिक प्रवृत्ति के भी बन जाते हैं।
साइकोलॉजिस्ट डॉ. जया सुकुल का कहना है कि पिछले कुछ समय से बच्चों की एकाग्रता में कमी आयी है और उनका ब्रेन हाइपर एक्टिव हो गया है। इसका एक बड़ा कारण उनका स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। इसकी वजह से बच्चों में एकाग्रता की कमी हो रही है और ब्रेन की स्पीड बढ़ गयी है। यह बच्चों में एडीएचडी का सबसे बढ़ा कारण है। पिछले कुछ समय में खासकर कोरोना के बाद से हमारे पास एडीएचडी के शिकार बच्चों के मामले ज्यादा आ रहे हैं।
एडीएचडी के कारण
मन:स्थली वेलनेस की फाउंडर और साइकियाट्रिस्ट डॉ. ज्योति कपूर के अनुसार बच्चों में एडीएचडी होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे बचपन में सिर में तेज चोट लगना। जिन बच्चों की नजर कमजोर होती है या फिर आई मूवमेंट ठीक से नहीं हो पाता, ऐसे बच्चों में भी एडीएचडी होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा प्रेगनेंसी के दौरान मां किसी तनाव में हो या जिन बच्चों का जन्म समय से पहले हुआ हो, उन बच्चों में भी एडीएचडी का खतरा दूसरे बच्चों के मुकाबले ज्यादा रहता है। एक रिसर्च में यह भी पाया गया है कि बच्चों को ज्यादा फैटवाला खाना खिलाने से भी उनमें एडीएचडी का रिस्क बढ़ जाता है।
Bu hikaye Vanitha Hindi dergisinin February 2023 sayısından alınmıştır.
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